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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १११२ पड़ पाड़ - संज्ञा, पु० दे० ( हि० पाट ) किनारा, ( धोती आदि कपड़े का ) मचान, बाँध, चह, तिकठी ( फाँसी की ) कुएँ की जाली । पाड़इ – संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० पाटल ) पाटल नामक पेड़ । पाड़ना- - स० क्रि० (दे०) गिराना, पछाड़ना, पटकना, पारना, लिटाना । पाड़ा - संज्ञा, पु० दे० (सं० पट्टन ) पड़ा ( प्रान्ती० ) भैंस का बच्चा, मुहल्ला । पाढ़ - संज्ञा, पु० दे० (सं० पाटा) पाटा, रखवाली वाला मचान । पाढ़त - संना, खो० दे० ( हि० पढ़ना ) जो पढ़ा जाय, जादू-मंत्र, पढ़ना किया का भाव । पाढ़र-पाढ़ल-- संज्ञा, पु० दे०( सं० पाटल ) पाडर नाम का पेड़ । पाढ़ा - संज्ञा. पु० ( दे० ) चित्रमृग | संज्ञा, स्त्री० एक औषधि लता, पाठा (दे० ) । पाढ़ी - संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० पाठा) पाढ़ नामक औषध विशेष । पाण - संज्ञा, स्त्री० (दे०) पीना, पत्ता, तांबूल, कपड़े की माँड़ी, पान | पाणि, पाणी - संज्ञा, पु० (सं०) हाथ, कर, पानि (दे० ) । "जोरि पाणि श्रस्तुति करति" । पाणिग्रहण – संज्ञा, पु० यौ० (सं०) विवाह की एक रीति जब वर कन्या का हाथ पकड़ता है, व्याह, विवाह | पाणिग्राहक संज्ञा, पु० यौ० (सं०) पति । पाणिघ- संज्ञा, पु० (सं०) हाथों का बाजा, मृदंग, ढोल आदि । पाणिज - संज्ञा, पु० (सं०) अँगुली नाखून | पाणिनि - संज्ञा, पु० (सं०) व्याकरण-ग्रंथ अष्टाध्यायी के रचयिता पक प्रसिद्ध मुनि जो ईसा से ३ या ४ सौ वर्ष पूर्व हुए थे । पाणिनीय - वि० (सं० ) पाणिनि मुनि का कहा या निर्माण किया हुथा । पाणिनीय दर्शन - संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पातल पाणिनि मुनि का व्याकरण शास्त्र ( श्रष्टाध्यायी ) । पाणिवाद संज्ञा, पु० यौ० (सं०) कर औौर चरण, हाथ-पैर । पाणिपीड़न - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) विवाह, व्याह. पाणिग्रहण, क्रोधादि से हाथ मलना । पातंजल - वि० (सं० ) पतंजलि कृत । संज्ञा, पु० पतंजलि कृत योग-दर्शन और महाभाष्य ( व्याकरण का उत्कृष्ट ग्रंथ) | पातंजल दर्शन - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) योग दर्शन या योग शास्त्र । पातंजल भाव्य-संज्ञा, पु० यौ० ( सं० ) महाभाष्य नामक व्याकरण का प्रख्यात ग्रथ । पातंजत्नसूत्र संज्ञा, पु० यौ० ( सं० ) योगसूत्र या योग-शास्त्र । पात संज्ञा, पु० (सं०) पतन, गिरना, पड़ना, नक्षत्रों की मृत्यु, नाश, कक्षाओं के नीचे जाने का क्रांति-वृत्त को काट ऊपर या संज्ञा, पु० दे० " ज्यों केला के स्थान (खगोल) राहु | ( सं० पत्र ) पत्र, पत्ता । पात पर, पात पात पर पात - कान में पहनने के स्वर्ण के पत्ते (आभूषण) । पातक- संज्ञा, पु० (सं० ) पाप, धर्म, कुकर्म । वि० पातकी । For Private and Personal Use Only ܕܙ पातघावरा - वि० यौ० (दे०) श्रति डरपोक । पातन --- संज्ञा, पु० (सं०) पत्तों (त्र ० ), गिराने वाला । स० क्रि० गिराने की क्रिया । पातर, पातुर, पातुरी - संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० पत्र पतरी, पत्तल | संज्ञा, स्त्री० (सं० पातली ) वेश्या, पतुरिया, रंडी । -वि० दे० (सं० पात्रट : = पतला ) पतला, दुबला, क्षीण, सूक्ष्म, बारीक । पातर पातरी - संज्ञा स्त्री० दे० सं० पत्र ) पत्तल, पतरी (दे० ) । " जूठी पातरि खात हैं " - ४० राय० । वि० स्त्री० (दे०) दुबली, पतली, क्षीण, कृश । पातल - संज्ञा, स्त्री० दे० (हि० पातर ) पत्तल |
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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