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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org पवन १०६६ पवित्र पघन - संज्ञा, पु० ( सं० ) वायु, हवा, पौन | पवनाशी - संज्ञा, पु० यौ० (सं० पवनाशिन् ) ( ० ) । मुहा० - पवन का भूसा होना सर्प, साँप। पवनास्त्र - संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) एक स्त्र जिससे वेग से वायु चलने लगे । पवनी - संज्ञा, स्त्रो० दे० ( हि० पाना ) नीच प्रजा, नाई, वारी आदि जो गाँव वालों से कुछ पाया करते हैं । - कुछ न रहना, सब उड़ जाना । कुम्हार का थावा, जल, साँस, प्राणवायु | संज्ञा, पु० (दे०) पावन, पवित्र । पवन अस्त्र - संज्ञा, पु० यौ० (सं० पवनात्र ) एक अस्त्र जिसके चलाने से बड़े जोर की वायु चलने लगती थी, पवनात्र । पवन कुमार - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) हनुमान् । भीमसेन, पवन पुत्र पवनात्मज, पघनसुत । " बंदौ पवन कुमार " - रामा० । पवनचक्की - संज्ञा, त्रो० दे० यौ० ( सं० पवन + हि० चक्की) हवा चक्की | पवनचक संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) बबंडर | पवन तनय - संज्ञा, पु० (सं० ) हनुमान, भीमसेन । पवनात्मज । 6: पवन तनय ऋतुलित बल धामा -रामा० । पवन पति - संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) वायु के अधिष्ठाता, या देवता । पवन- परीक्षा - संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं० ) आषाढ़ पूर्णिमा को वायु की दिशा को देख भविष्य कहना | 33 पवनपुत्र - संज्ञा, पु० य० (सं० ) हनुमान, भीमसेन, पौन-पूत (दे० ) । पवन-बाण- संज्ञा, पु० यौ० (सं०) वह बाण जिसके छोड़ते ही बड़े वेग से वायु चलने लगे, पवन शर पवनसखा - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) श्राग । पवन-सुत, पवन सुवन पवननन्द संज्ञा, पु० यौ० (सं०) हनुमान, भीमसेन । " जात पवनसुत देवन देखा "- - रामा० । पवनायन - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) झरोखा खिड़की, गवात, वातायन । पवनाल - संज्ञा, पु० (दे०) पुनेरा नामक धान । पवनावर्ती - संज्ञा स्त्री० (सं० ) महर्षि कश्यप की एक स्त्री । पवनाश-पवनाशन- संज्ञा, पु० यौ० (सं०) नाग, साँप, सर्प । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पवमान - संज्ञा, पु० (सं० ) चन्द्रमा, वायु । पवर-परी - संज्ञा, स्त्री० दे० (हि० पॅंवरि ) परि, घर का द्वार, दरवाजा | पवरिया - संज्ञा, पु० दे० (हि० पँवर) पौरिया | पवर्ग - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) संस्कृत या हिंदी भाषा की वर्णमाला का पाँचवाँ वर्ग । पवार - संज्ञा, पु० दे० (सं० परमार ) क्षत्रियों की एक जाति, परमार । (( A पवारना, पवारना - स० क्रि० दे० (सं० प्रवारण ) फेंकना, गिराना । रज होह जाहि पखान पवारे " - रामा० । पवाई - संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० पाँव ) एक जूता, चक्की का एक पार्ट, पाने का भाव । पवाड़ा – संज्ञा, पु० दे० (सं० प्रवाद) पँवाड़ा, लंबा चौड़ा या विस्तृत इतिहास, कथा । यौ० - प्राला पँवारा । पवाज - संज्ञा, पु० (दे०) गँवार, ग्रामीण | पधानri - स० क्रि० दे० (हि० पान = भोजन करना ) जिमाना, खिलाना, भोजन कराना, रोटी बनवाना, पोवाना ( ग्रा० ) । पवि-संज्ञा, पु० (सं०) इन्द्र का अस्त्र, वज्र, बिजली, गाज, वाक्य । छूटै पवि पर्वत पहँ जैसे " पविताई - संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० पवित्रता ) पवित्रता । " 'रामा० । पवित्तर - वि० दे० ( सं० पवित्र ) पवित्र । " गोबर लगे पवित्तर होय १ - प्र० ना० । पवित्र - वि० (सं०) साफ़, शुद्ध, निर्मल, निर्दोष | संज्ञा, पु० (सं०) वर्षा, ताँबा, कुशा पानी, दूध, जनेऊ, घी, शहद, शिव, विष्णु । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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