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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - पर्णकृच्छ्र १०६४ पर्यनुयोग पर्णकन्छ- पंक्षा, पु० यौ० (सं०) व्रत विशेष | पर्णिक-संज्ञा, पु० (सं०) पत्ते बेंचने वाला, जिसमें ५ दिन तक क्रम से, ढाक, गूलर | बारी। कमल, बेल और कुश के पत्तों का काढ़ा पर्णिका-संज्ञा, स्त्री. (सं०) शालपर्णी, पिया जाता है। मान कंद, अग्नि मथने की श्ररणी। पर्णखंड-संज्ञा, पु० (सं०) वनस्पति, जिस | पर्णिनी-संज्ञा, स्त्री. (सं०) मषवन । संज्ञा, पेड़ में फूल बिना फल होते हों। पु. (सं०) सुगंध वाला। पर्याचोरक-संज्ञा, पु. (सं०) गंधद्रव्य विशेष। पर्णी-संज्ञा, पु० (सं० पर्णिन् ) पेड़, वृक्ष एक पर्णनर-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) ढाक के पत्तों | औषधि । संज्ञा, स्त्री० (सं०) अष्परा-भेद । का बना पुतला जो मृतक के बदले जलाया | पर्त-संज्ञा, पु० दे० (हि० परत) परत, तह । जाता है। पर्दनो-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि० पर्दा ) धोती। पर्णभोजन-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) वह जीव पर्दा-संज्ञा, पु० दे० (हि० परदा ) परदा, जो केवल पत्ते खाकर रहे. बकरी, छेरी, यमनिका सित्तार के बंद, कान का परदा । पर्णभोजी। यौ०-पर्दानशीन-पर्दे में रहने वाली स्त्री। पर्णमणि-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) हरित मुहा०—पर्दाफाश करना-गुप्त या गोप मणि, पन्ना, एक प्रकार का अस्त्र । नीय बात का प्रगट करना । पर्णमाचल-संज्ञा, पु. (सं.) कमरख वृक्ष । | पर्पट-संज्ञा, पु० (सं०) पित्तपापड़ा, पापड़ । पर्णमृग-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) पत्तों में घूमने "छिनोदवा पर्पट वारिवाहः"- लोलं० । वाला जीव, गिलहरी, बंदर आदि। | पर्पटी -- संज्ञा, स्त्री० (सं०) गुजरात की मिट्टी, पर्णय-संज्ञा, पु. (सं०) एक दैत्य जो इन्द्र | गोपी चंदन पा | गोपी चंदन पानडी, पपड़ी, स्वर्ण पर्पटी, द्वारा मारा गया था (पु.)। रस-पर्पटी नाम की औषधि (वै० । पर्णराह- संज्ञा, पु० (सं०) बसंत ऋतु । पर्पटीरस-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) एक प्रकार पर्णलता-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) पान की का रस (वैद्य०) । बेल । पयेक - संज्ञा, पु० (सं०) पलंग, बड़ी चारपर्णवल्कल-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) एक ऋषि। | पाई, प्रयंक पर्जक (दे०)। पर्णघल्ली-एंडा, स्त्री० यौ० (सं०) पलासी पर्यक-बंधन-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) एक नाम की लता। प्रकार का योग का प्रायन । पर्णशवर-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) देश-विशेष। पर्यंत-अव्य० (सं.) तक, लौं : पणशाला-संज्ञा, स्त्री० यो० (सं०) पत्तों की पर्यंतदेश-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) किसी देश झोपड़ी, पर्णकुटीर। के अंत का देश, सीमांत देश । पर्णशालाग्र-संज्ञा, पु० (सं.) भादश्व वर्ष | का एक पहाड़ (पु.)। पर्यंतभूमि-संज्ञा, स्त्री० (सं०) नदी, नगर या पर्णसि-संज्ञा, पु० (सं०) कमल, पानी में पर्वत आदि के समीप की भूमि, परिसर भूमि । बना हुआ घर, सागर, समुद्र । पर्यटन-संज्ञा, पु. (सं०) भ्रमण, यात्रा, पर्णक-संज्ञा, पु० (सं०) एक ऋषि जिनसे घूमना-फिरना । वि० पर्यटनीय । पार्णिक गोत्र चला (पु०)। पर्यनुयोग-संज्ञा, पु० (सं०) जिज्ञासा, किसी पर्णास-संज्ञा, पु० (सं०) तुलसी । अज्ञात विषय के ज्ञात करने के हेतु प्रश्न । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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