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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ६६ को लगाकर खाते हैं । यह कार्तिक शुक्लप्रतिपदा से पूर्णिमा तक के अन्दर किसी भी तिथि को माना जा सकता है । प्रश्न- क्रेत्र - यौ० संज्ञा, पु० दे० (सं० अन्न क्षेत्र ) भूखों को जहाँ न दिया जाय, अन्नसत्र । प्रश्न-जल - संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) दानापानी, खाना-पीना, खान-पान, याबदाना ( ० ) जीविका, रोज़ी । मु० - अन्न-जल त्यागना या छोड़नाउपवास करना, निराहार, निर्जल व्रत करना, प्रश्न-जल ग्रहण करना-खाना-पीना । अन्न-जल न ग्रहण करना (संकल्प) कार्य कर के ही खाना-पीना, कार्य का पूरा करना या मर जाना ( बिना खाये - पिये ) Do or die | अन्नदाता – संज्ञा, पु० यौ० (सं०) अन्न-दान करने वाला, पोषक, प्रतिपालक, मालिक, स्वामी, स्त्री० अन्नदात्री । । अन्न-दान - संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) अन्न या भोजन देना । न दास - संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) पेट के ही लिये दास होने वाल, पेटू, खुदगर्ज, मतलबी । अन्न- पानी - संज्ञा, पु० यौ० (सं० अन्न + पानी - हिं० ) देखो - " श्रन्न-जल । " अन्नपूर्णा - संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं० ) अन्न की अधिष्ठात्री देवी, दुर्गा का एक रूप, काशीश्वरी, विश्वेश्वरी । अन्नप्राशन- संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) बच्चों को पहिले पहल न खिलाने का संस्कार | विशेषतः ६ वें या ७ वें मास में यह संस्कार किया जाता है । अन्नमय कोश – संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) पंचकोशों में से प्रथम, त्वचा से लेकर वीर्य तक का अन्न से बना हुआ समुदाय, स्थूल शरीर ( वेदान्त) | न्न विकार - संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) शुक्र, वीर्य, विष्टा, मल । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अन्मोल न-ब्रह्म-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) अन्न स्वरूप ब्रह्म । अन्न-भाजन - संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) अन्न या भोजन का पात्र । अन्न- भिक्षा - संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं० ) अन की भीख, अन्न या भोजन के लिये प्रार्थना । भन्न भोक्ता -- संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) साथ खाने-पीने वाला, जिसके साथ खान पान हो । अन्नमय - वि० (सं० ) अन्न - स्वरूप, अन्नप्रवर्धित | अन्न-रस--संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) अन्न का सार भाग, अन्न से उत्पन्न होने वाला रस, माँड़ । अन्न लिप्सा - संज्ञा स्त्री० यौ० (सं०) क्षुधा, भूख, बुभुक्षा । अन्न-वस्त्र – संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) खानाकपड़ा, वस्त्र- भोजन, ग्रासाच्छादन, जीवन के वश्यक पदार्थ 1 अन सत्र - संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) भूखों को मुफ्त भोजन जहाँ दिया जाये, अन्न क्षेत्र । पन्ना -संज्ञा, स्त्री० (सं० अम्ब) दाई, धाय, उपमाता । वि०- दे० (सं० अनाथ ) जिसका कोई मालिक न हो, स्वतंत्र, अनाथ, स्वच्छंद, जैसे - अन्ना साँड़ । अन्नाभाव - संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) अन्न की विद्यमानता, दुर्भिक्ष, अकाल, मँहगी । अन्नार्थी - संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) अन्न चाहने वाला, भोजनेच्छु । अन्नाहारी - संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) केवल अन्न खाने वाला | ग्रन्नी – संज्ञा, स्त्री० (सं०) धात्री, उपमाता । वि० ( हिं० आना ) आने ( ४ पैसा) वाली, जैसे - एकन्नी, द्विन्नी ( दुन्नी) आदि । अन्मोल - वि० ( सं० ) अमूल्य, वेशक्रीमती, अनमोल, अमोल (दे० ) | For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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