SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1092
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - परसा २०८१ पराक्रमी परसा-संज्ञा, पु० दे० (हि० परसना) पत्तल, परस्मैपद-संज्ञा, पु० (सं०) क्रिया का एक एक पुरुष का भोजन । भेद (सं० ब्या०)। परसाद*-संज्ञा, पु० दे० (सं० परसाद) | परहरना* ---१० कि० दे० (सं० परिहरण) प्रसाद, प्रसन्नता, कृपा, दया. देवता का दिया | छोड़ना. त्यागना । "अस विचारि परहरहु या उस पर चढ़ाया हुश्रा, पदार्थ, भोजन। न भोरे"-रामा० । परसाना* - स० क्रि० दे० (हि० परसना) परहार-संज्ञा, पु० दे० (सं० प्रहार ) छुलाना, भोजन बँटवाना । "दल पर फन प्रहार चोट । संज्ञा, पु० दे० ( सं० परिहार) परसावति"-सूर० । त्याग, उपाय, परिहार। परमाल-पारसाल -- अव्य० दे० यौ० (सं० परहित - संज्ञा, पु. यौ० ( सं०) परोपकार, पर+साल-फा०) पिछले वर्ष, श्रागामी वर्ष । दूसरों की भलाई । “ परहित सरिस धर्म परसिद्ध*- वि० दे० (सं० प्रसिद्ध) प्रसिद्ध | नहिं भाई'-रामा०। विख्यात । परहेज-संज्ञा, पु० ( फा० ) उन वस्तुओं से परसिया-संज्ञा, पु० (दे०) हँसिया, दाँती। बना जो स्वास्थ्य को हानिकारी हों। परसु – संज्ञा, पु० दे० (सं० परशु) कुठार, दोषों, दुर्गणों या बुराइयों से बचना,संयम । फरसा, परशु । परहेज़गार-संज्ञा, पु. ( फा० ) संयमपरसूत*- वि० संज्ञा, पु० दे० (सं० प्रसूत) कर्त्ता, संयमी। संजात, उत्पन्न, पैदा, उत्पादक । संज्ञा, पु. परहेलना-सं० कि० दे० ( सं० प्रहेलना ) (दे०) एक रोग जो प्रसव के पीछे हो जाया तिस्कार, अनादर, अपमान करना । करता है (वै०)। परहोंक-संज्ञा, पु० (दे०) बोहनी । परसूती-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० प्रसूती वह | परांठा--- संज्ञा, पु० दे० ( हि० पलटना ) स्त्री जिसके हाल में पुत्र उत्पन्न हुआ हो या परोठा, परौठा, परेठा, पराठा, तवा पर घीजिसके प्रसूत रोग हुना हो। द्वारा सेंकी परतदार पूरी।। परसेद*-संज्ञा, पु० दे० (सं० प्रस्वेद ) परा-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) दो विद्याओं में प्रस्वेद, पसीना। से एक, ब्रह्म विद्या, उपनिषद-विद्या । संज्ञा, परसों - अ० दे० (सं० परश्वः) बीते दिन के पु० (दे०) पाँति, पंक्ति, कतार ( फा०)। पहले का दिन, आगामी दिन के बाद का पराइ-पराई-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० पर ) दिन। अन्य या दूसरे की । अ० कि० (दे०) भागना, परसोतम*-संज्ञा, पु० दे० यौ० (सं० " देखि न सकहिं पराइ विभूती"-रामा० । पुरुषोत्तम) पुरुषोत्तम, विष्णु, श्रेष्ठ पुरुष ।। पराक--संज्ञा, पु. ( सं० ) वृत्तविशेष (पिं०) परमही-वि० दे० (सं० स्पर्श) छूने या प्रायश्चितविशेष, तलवार या खड्ग, बुद्र स्पर्श करने वाला। रोग-जन्तु, भेद। परस्पर-कि० वि० (सं०) आपस में, एक पराकाष्टा-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) सीमांत, दूसरे के साथ, परसपर (दे०)। चरमसीमा, अंत। परस्परोपमा-संज्ञा, स्त्री० (सं.) एक अलं- पराकम-संज्ञा, पु. ( सं० ) शक्ति, वल, कार, जिसमें उपमेय और उपमान परस्पर पौरुष. उद्योग पुरुषार्थ । (वि० पराक्रमी)! उपमान और उपमेय हों, उपमेयोपमा पराक्रमी- वि० (सं० पराक्रमिन् ) बलिष्ट, (अ० पी०)। शक्तिशाली, पुरुषार्थी, वीर । भा० श० को.--१३६ For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy