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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परमात्मा १०७६ परघर को प्रमाणुवों से रचित मानने का सिद्धान्त परमुख*-वि० दे० (सं० पराङ्मुख) विमुख, (न्या०, वैशे०)। प्रतिकूलाचारी विरुद्ध । परमात्मा--संज्ञा, पु० यौ० (सं० परमात्मन् ) परमेश-परमेश्वर- संज्ञा, पु. यो. (सं.) परमेश्वर, ब्रह्म । भगवान. परमात्मा, ब्रह्म, विष्णु, शिव, परमानंद--संज्ञा, पु. यौ ० सं०) परमानन्द, परमेनुर (दे.) ब्रह्म के अनुभव का सुग्व समाधि का सख.. | परमेश्वरी-झा, स्त्री० (सं०) दुर्गा. देवी, श्रानन्द स्वरूप ब्रह्म । 'परमानन्द मगन मुनि | परमेसुरी (१०) 'परापराणाम् परमा, राऊ'--रामा० । त्वमेव परमेश्वरि दुर्गा । परमान* ----संज्ञा, पु० दे० (सं० प्रमाण) प्रमाण । | परमेष्टी- संज्ञा, पु० (सं० परमेष्टिन् ) ब्रह्मा, सबूत, सत्य या यथार्थ बात, सीमा, हद।। विष्णु शिव । “परमेष्टी पितामह'-अमर० । परमाना ... स० कि० दे० (सं० प्रमाm) | परमेसर-परमेनुर* ---संज्ञा, पु० दे० (सं० ठीक समझना या स्वीकार करना, मानना । परमेश्वर) परमेश्वर । प्रमाण अंगीकार करना विश्वास करना, परमाद*-----का, पु० दे० सं० प्रमोद) प्रमोद, प्रमाण से पुट या दृढ़ करना। हर्ष, प्रसन्नता । परमाद- संज्ञा, पु० (दे०) प्रमाद (सं.) : परमान्न --- संज्ञा, पु० यौ० (सं०) उत्कृष्ट या | परमधिना---स० कि० दे० सं० प्रवोधन) श्रेष्ठ अन्न, जैसे-खीर पूड़ी आदि। प्रवोधना, जगाना ज्ञानोपदेशे या शिक्षा परमायु-- संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं० परमायुस् । देना दिलासा या धैर्य देना, समझाना । जीवन-काल की सीमा या हद, मनुष्य की "बात बनाई जग ठगा मन परमोधा परमायु भारत में १२ वर्ष है। नाहिं'--कवी. परमार... संज्ञा, पु० द० सं० प्रमार, प्रमर)। परयक* --- संज्ञा, पु० द० (२० पय्यक पल्यंक) क्षत्रियों की एक जाति, चार। पलंग बड़ी चारपाई शय्या, परजक (दे०)। परमारथ * --- संज्ञा, पु. द० यौ० (सं० पर परनउ-परलव-परलै-गरलय --संज्ञा, पु. मार्थ) मोक्ष, मुक्ति, सबसे उत्कृष्ट पदार्थ, दे० (सं० प्रलय) सृष्टि का प्रलय या नाश । यथार्थ तत्व : 'स्वारथ, परमारथ सकल, 'पल में परलै होइगी".-कवी० । सुलभ एक ही ओर''--- तुल० । परला-वि० दे० (सं० पर = उधर -+लापरमाथ-संज्ञा, पु० (सं०) सबसे श्रेष्ठ वस्तु, प्रत्य०) उधर का उस ओर का । मुहा०--- मोक्ष, मुक्ति। "स्वारथ-रत परमार्थ विरोधी' परले दरजे या सिरेका-हद दरजे का, ---रामा०। अत्यन्त, बहुत ज्यादा । (स्त्री० एरली)। परमार्थ-परमारथवादी ... संज्ञा, पु० यो. परलोक-सज्ञा, पु० यौ० (सं०) स्वर्ग, (सं० परमार्थ वादिन् ) ज्ञानी, ब्रह्मज्ञानी, वैकुण्ठ, दूसरा लोक या जन्म, दूसरा शरीर। तत्वज्ञ, वेदांती। "जे मुनीस परमारथ वादी' यौ..-परलोकवासी- मरा हुआ । मुहा० ---रामा०1 ----परलोक मिधारना ( जाला )-मर परमार्थी-वि० (सं० परमार्थिन्) यथार्थ तत्व जाना. अन्य शरीर धारण, पुनर्जन्म ! का खोजी, तत्वजिज्ञासु, मुमुक्षु । परलाक-गमन--संज्ञा, पु. यौ० (सं०)मृत्यु । परमिनि-संज्ञा, स्त्री० (सं.) चरम या अन्त परवर* ---- संज्ञा, पु० दे० (सं० पटोल) परवला सीमा, मर्यादा, सीमित । संज्ञा, स्त्री. वि. (फ़ा०) पालने वाला-जैसे, ग़रीब. परमितता। । परवर । संज्ञा, स्त्री० (फा०) परवरी । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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