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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org पड़ती पड़ती पड़ती- पड़ती--संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० पटच्छदि) दीवालों को बरसात से रक्षित रखने वाला छोटा छप्पर, कमरे आदि के बीच की पाटन, टांड़, परकृती (ग्रा० ) । पड़त पड़ता - संज्ञा, पु० स्त्री० दे० ( हि० पड़ना ) किसी वस्तु का क्रय- मोल, लागत । मुहा०-- पड़ता खाना या पड़ना-लागत और चाहा हुआ लाभ मिल जाना, पड़ते से लागत से व्यय और लाभ दोनों मिलजाने पर । पड़ता फैलना या बैठाना -- कुल व्यय और लाभ मिलाकर किसी वस्तु का भाव निश्चित करना । दर, भाव, लगान की दर, सामान्य दर, औसत, मध्यराशि | १०६० पड़ताल - परताल, परतार--संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० परितोलन ) पड़तालना क्रिया का भाव, छानबीन जाँच, अनुसंधान, निरीक्षण, वीक्षण, खेतों की जाँच । यौ० जाँच 6 i । पड़ताल । पातक अपार परतार पार पावैगी " - रत्ना० । •--- पड़तालना -- स० क्रि० दे० ( हि० पड़ताल + ना - प्रत्य० ) पड़ताल करना, देख-भाल या जाँच करना परतारना (ग्रा० ) । पड़ती -- संज्ञा, त्रो० दे० ( हि० पड़ना ) वह भूमि खंड जहाँ कुछ दिनों से खेती न की जाती हो, परती ( ग्रा० ) । मुहा०पड़ती उठना-पड़ती का जोता-बोया जाना या उसमें खेती होना पड़ती कोड़ना - बिना जोते- बोये या बिना खेती के छोड़ना जिससे उपज-शक्ति अधिक हो जावे । पड़ती पड़ना - ठीक समय पर भूमि को जोत-वो न सकने से उसे छोड़ रखना । पड़ना - ० क्रि० दे० ( सं० पतन ) गिरना, लेटना, ऊँचे से नीचे आना, पतित होना, दुख में फँस जाना, बीमार होना, परना ( ग्रा० ) । मुहा० - किसी पर पड़ना - पड़ोस थात या विपत्ति पड़ना, कठिनाई या संकट आ जाना, बिछाया या फैलाया जाना, पहुँचाया जाना या पहुँचना, प्रविष्ट या दाखिल होना, दखल देना या हस्ताक्षेप करना, टिकना या ठहरना । मुहा॰—पड़ा होना ( रहना) - एक ही ठौर ठहरा रहना या बना रहना, रखा रहना, शेष रहना, विश्रामार्थ लेटना, साना या याराम करना । म्हा० ( पड़ा) पड़े रहना - कुछ कार्य किये बिना लेटे रहना, बेकाम रहना, रोगी या बीमार होना, चारपाई पर पड़े रहना, प्राप्त होना, मिलना पड़ता खाना, राह में मिलना, उत्पन्न होना, टहरना, इच्छा या धुन होना। मुहा० क्या पड़ी है क्या प्रयोजन है । पड़पड़ाना- - य० क्रि० दे० (अनु० ) पड़ पड़ का शब्द होना, चरपराना, तड़पना । पड़पोता - संज्ञा, पु० दे० (सं० प्रपौत्र ) पुत्र का पोता, पोते का लड़का । स्त्री० पड़पोती, प्रपौत्री । योंहीं - पड़दादा, पड़बाबा, पड़दादी । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पड़वा - संज्ञा, त्रो० दे० (सं० प्रतिपदा, प्रा० पाव) हर एक पाख का पहिला दिन | परीवा । भैंस का बच्चा, डाँगर ( ग्रा० ) । पड़ाक -- संज्ञा, पु० दे० (अनु० ) पटाक | पड़ाना - स० क्रि० दे० (हि० पड़ना का रूप ० ) गिराना, झुकाना, रोग से शय्या-मग्न होना । पड़ाव संज्ञा, पु० दे० ( हि० पड़ना + - श्राव - प्रत्य० ) यात्रियों के ठहरने या टिकने की जगह । पड़िया - संज्ञा, त्रो० दे० ( हि० पँडवा, पड़वा ) भैंस का मादा बच्चा । पुं० विलो० पड़वा । पड़िया --- संज्ञा, पु० दे० ( हि० पड़वा ) पड़वा, परीवा (ग्रा० ) । पड़ांस संज्ञा, पु० दे० (सं० प्रतिबास, प्रतिवेश ) किसी पुरुष के घर के निकट के घर, For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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