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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पच्चीस १०५४ पछारना पच्चीस-संज्ञा पु० (दे०) बीप और पाँच मुरि पछरा खाता'-हरि० । कि० वि०, वि० की संख्या, २५, पचीस (दे०)। (दे०) पिछड़ा हुअा, पीछे। पच्छ -संज्ञा, पु० दे० (सं० पक्ष ) पत, | पछलगा-पछलागा-संज्ञा, पु० दे० यौ० ओर, तरफ, पार्श्व, दो या अधिक में से (सं० अनुग) अनुयायी, अनुगामी, अनुचर, एक, पंख। यौ० पच्छपात, वि० पच्छपातो। दास । “हौं पंडितन केर पछलगा"-प० । पच्छम-पच्छिम-संज्ञा, पु. दे. ( सं० पछलत्त-संज्ञा, पु. यौ० (दे०) पीछे के पश्चिम ) पश्चिम दिशा। पैरों की मार या चोट । वि० पछलत्ता पच्छघात-पच्छाधात-संज्ञा, पु. दे. यौ० (ग्रा० ) । स्त्री० पहलत्ती। (सं० पक्षाघात ) एक श्रद्धांग-नाशक बात पछलना-अ० क्रि० दे० (हि. पिचलना) रोग, फालिज़, लकवा। पिछलना, पीछे रहना, पिछड़ना। पच्छिनी-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० पक्षिणी) पड़वा-वि० दे० (सं० पश्चिम ) पश्चिम चिड़िया, पच्छी की स्त्री। दिशा का, पश्चिम ओर का। संज्ञा, पु० (दे०) पच्छी -संज्ञा, पु० दे० (सं० पक्षी) पंछी। पश्चिमीय वायु। (ग्रा०) पक्षी, चिड़िया, पखेरू, पंखी। पछाँह- संज्ञा, पु० दे० (सं० पश्चिम) पश्चिम पछड़ना-अ० कि० दे० (हि. पीछा ) गिर दिशा का देश । वि. पहा-पश्चिम पड़ना, पछाड़ा जाना, पीछे रह जाना या देश का वासी, पछाँहो । हटना, पिछड़ना। पछाहिया-पछाँही--वि० दे० (हि० पछाँह + पछताना*--अ० क्रि० दे० ( हि० पछताव ) इया-प्रत्य० ) पश्चिम दिशा का, पश्चिमी अनुचित कार्य करने पर दुखी होना, पश्चा- देश का वासी, पहिया (दे०)। त्ताप करना। पछाड़-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि० पीछा) मूञ्छित पछतानि*-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि० पछतावा) या अचेत होकर गिरना, पछार (ग्रा०) । पश्चाताप, दुख । " गंगा के कछार में पछार छार करिहौ" पछतावना-अ.क्रि० दे० (हि० पछताना) -पद्मा० । मुहा०-पछाड़ खानापश्चाताप या शोक करना, दुखी होना।। खड़े होने पर अचेत हो कर गिर पड़ना। पछतावा-पछताया—संज्ञा, पु० दे० (सं० पछाड़ खा कर रोना-रोते रोते गिरना, पश्चाताप ) दुख, शोक, पश्चाताप । 'सिय अचेत होना। कर सोच, जनक-पछतावा"--रामा०। पछाड़ना-स० क्रि० दे० (हि. पछाड़ ) पछना-अ० कि० दे० (हि. पाछना) पछ गिरा या पटक देना, गिराना, पटकना। जाना । संज्ञा, पु. वस्तु पाछने का यंत्र, स० क्रि० दे० (सं० प्रक्षालन ) कपड़े साफ सद छूरा, चाकू। करने को उसे जोर से पटकना, पछारना । पचनी-संज्ञा, स्रो० दे० (हि. पछना ) कत पछानना-स० कि० दे० (हि. पहचानना) रनी, छूरी, छोटा चाकू। पहचानना, चीन्हना, पिछानना (३०)। पछमन-क्रि० वि० दे० (सं० पश्चात ) पीछे, पछाना-- अ० क्रि० (७०) पछियाना, गिछि(विलो० श्रागे जाना)। " धरि न सकत याना, पीछे पीछे जाना ।" कहै 'रतनाकर' पग पछमनो, सर सम्मुख उर लाग"-सूर०। । “ पछाये पच्छिराज हू की"। पग-संज्ञा, पु० दे० (हि० पछाड़) पछाड़। पछारना-स० क्रि० दे० (हि. पछाड़ना) " कछु न उपाय चलत अति व्याकुल मुरि पछाड़ना, गिराना, पटकना, कपड़े को For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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