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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - पंडुर १०४८ पंसासार पंडुर-संज्ञा, पु० (दे०) पनिहा साँप, डेडहा, | " बुरो पेट-पंपाल है, बुरो युद्ध सों भागनो" वि० दे० (सं० पांडुर ) पांडु वर्ण का। -गंग०। पतीजना-स० क्रि० दे० (सं० पिंजन ) रुई, पंपासर-संज्ञा, पु. यो० (सं०) एक ताल, श्रोटना, पीजना। ( दक्षिण भारत)। पँतीजी-संज्ञा, 'स्त्री० दे० (सं० पिंजक ) रुई पँवर -- संज्ञा, पु० (दे०) ड्योदी, द्वार, सामान धुनने की धुनकी। सामग्री। पँवरना-अ० कि० दे० (सं० प्लवन) तैरना। पंथ-संज्ञा, पु० दे० (सं० पथ) पथ, रास्ता, पैरना, थाह लेना, पता लगाना।। मार्ग, राह, बाट, श्राचार, पद्धति, रीति, - पँवरि-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० पुर -- घर ) चाल । “खोजत पंथ मिलै नहिं धूरी"--. ड्योदी, द्वार । " अातुर जाय पँवरि भयो रामा० । मुहा०-पंथ गहना-चलना, ठादो, कह्यो पँवरिया जाय"- सूबे० ।। राह पकड़ना, आचरण ग्रहण करना। पंथ परिया-पँवरिया- संज्ञा, पु० दे० (हि. दिखाना-राह बताना, शिक्षा देना | पंथ पँवरी =पौर ) दरवान, द्वार-पाल, व्योढ़ीदार देखना निहारना या जाहना-अवसर या द्वार पर गा गा कर माँगने वाला भिखारी। प्रतीक्षा करना, बाट जोहना (७०)। पंथ "को पँवरिया हाथ जोरि प्रभु विश्वामें (पर) पाँव देना-प्राचार ग्रहण करना | मित्र पधारे"। या चलना। पंथ पर लगना (होना पँवरी, पाँवरी-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. पँवरि) आना) राह पर आना, या होना, ठीक ड्योढ़ी, द्वार, दरवाज़ा । संज्ञा, स्त्री० दे० चाल पकड़ना । किसी के (को) पंथ (हि. पाव ) पाँवड़ी, खड़ाऊँ। “ पाँव न लगना (लगाना ) किसी का (का) वरी भ भर जरई"-पद। अनुचर या अनुयायी होना, बनाना-ठीक पँवाड़ा-पँवारा-संज्ञा, पु० दे० (सं० प्रवाद) रास्ते पर लाना। पीछे लगना. बारम्बार विस्तार-युक्त कथा, व्यर्थ विस्तार से कही तंग करना। पंथ सेना- राह देखना, अव हुई बात, एक गीत। “वीर पँवारा वीरै गावे सर करना, वासरा देखना । धर्म-मार्ग, मत, औ रणसूर सुनै चित लाय"-शाल्हा० । धर्म, संप्रदाय । जैसे-कबीर-पंथ। कीर्ति कथा ।" श्रजहूँ जग गावत जासु पंथान--संज्ञा, पु. (सं० पंथ) मार्ग, रास्ता। पँवारी"-कविः । पंथकी - संज्ञा, पु. दे० (सं० पथिक ) पँवार-संज्ञा, पु० दे० (हि. परमार) क्षत्रियों बटोही, राही, पथिक । __ की एक जाति । पंथिक -संज्ञा, पु० दे० (सं० पथिक) बटोही, पँवारना-स० कि० दे० (सं० प्रवारण) राही, पथिक (सं.)। फेंकना, दूर करना, हटाना । "रज हुइ जाहिं पंथी-संज्ञा, पु० दे० (सं० पथिन ) बटोही, | पखान पँवारे । “ कछु अंगद प्रभु-पास राही, पथिक, किसी मत का अनुयायी, पँवारे "- रामा० । जैसे-दादू पंथी। पंधारी-- संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० प्रचाल) मूंगा। पंद-संज्ञा, स्रो० (फ़ा० ) सिखावन, उपदेश, पंसारी-संज्ञा, पु० दे० (सं० परायशाली) शिक्षा सीख । किराना, मेवा और औषधि बेंचने वाला पंपा-संज्ञा, स्त्री० (सं०) दक्षिण देश की एक बनिया। नदी, एक ताल, एक नगरी। पंसासार-संज्ञा, पु० दे० (सं० पाशक + पंपाल-वि० (दे०) बड़ा पापी, पापी। । सारिगोटी) पाँसों का खेल, चौपड़ । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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