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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org पंचतित २०४५ पंचत्व (सं०) । मुहा०-- पंचत्व को प्राप्त होना - मर जाना । पंचतिक्त संज्ञा, पु० यौ० (सं०) चिरायता, गुरिच, भटकटैया, सोंठ, कूट नामक श्रौषधियों का समूह | " पंचतिक्त कषायस्य मधुना सह निषेवणात्"- भाव० । पंचतोलिया - संज्ञा, पु० दे० यौ० हि० पाँच + तोला ) एक तरह का महीन या बारीक कपड़ा | पंचत्व -- संज्ञा, पु० (सं० ) मृत्यु, मरण । देहे पंचत्वमापन्ने देही कम्र्मानुगोऽवशः " 16 --भाग० । पंचदेव - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) शिव, गणेश, विष्णु, सूर्य, देवी, इन पाँच देवताओं का समूह, पंचदेवता । पंचद्रविड़ - संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) द्रविड़, अंध, महाराष्ट्र, करणाट और गुर्जर नामक पाँच ब्राह्मणों का समुदाय । पंचनद -- संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) झेलम, चनाव, व्यास, रावी, सतलज नामक पांच नदियों का समुदाय, पंजाब देश | "पंचनद जिस देश में हैं सो है पंचाल ” - मन्ना० । पंचगंगा तीर्थ, काशी । पंत्रनाथ - संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) जगन्नाथ, बद्रीनाथ, द्वारिकानाथ श्रीनाथ, रंगनाथ का समूह | पंचनाथ दरशन - बिना, जीवन दिया गँवाय" - मन्ना० । 4: पंचपल्लव - संज्ञा, पु० (सं०) श्रम, जामुन, कैथा, बेल और नींबू, वृत्तों के पत्ते । पंचपात्र - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) एक बर्तन -- ( पूजा ) श्राद्ध । पंचपीरिया -संज्ञा, पु० दे० ( हि०पंच + Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पंच महायज्ञ --- संज्ञा, पु० यौ० (सं०) ब्रह्मयज्ञ (संध्या), देव-यज्ञ, ( श्रमिहोत्र या हवन ) पितृयज्ञ ( श्राद्ध), भूत-यज्ञ ( वलि वैश्व देव ) नृयज्ञ ( अतिथि- पूजन ) । पंचमहाव्रत-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, दान न लेना, अहिंसा, अस्तेय, ( चोरी का त्याग ), सूनृता, सत्यभाषण, यही पंचयज्ञ भी कहे जाते हैं । वि० पंच महाव्रती । पंचनामा - संज्ञा, पु० दे० यौ० (हि० पंच --- नामा फा० ) वह पत्र जिस पर पंचों का निर्णय लिखा हो । पंचपति – संज्ञा, ५० यौ० (सं०) पांच पति पंचमी - संज्ञा, स्त्री० (सं० ) पंचमी तिथि, पांडव, पंचभर्ता । द्रौपदी, अपादान कारक (व्या० ) । पंचमुख, पंचमुखी - वि० यौ० (सं० पंचमुखिन ) पाँच मुख वाला, शिवजी, सिंह, पंचानन | पंचमूल - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) पाँच जड़ों के मेल से बनी औषधि | पंचमूल PEARANCES 66 , फ़ा० पीर ) पांच पीरों की पूजा करने वाला ( मुसल० ) । पंचप्राण - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) प्राण, अपान उदान, समान, व्यान, नामक पाँच पवनों का समुदाय । पंचप्राण बिन सूना मंदिर देखत ही भय धावे "स्फु० । पंचभर्त्तारी - संज्ञा स्त्री० यौ० (सं०) द्रौपदी । पंचभूत - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) पंचतत्व, श्राकाश, तेज, वायु, जल, पृथ्वी नामक ५ तत्वों का समूह, पंचमहाभूत । पंचम - वि० पु० (सं० ) पाँचवा, निपुण, सुन्दर | संज्ञा, पु० (सं०) गान विद्या का पाँचवाँ स्वर, कोयल का स्वर, एक राग ( संगी० ) । त्रो० पंचमी | पंचमकार - संज्ञा, पु० यौ० मुद्रा, मद्य, मांस, मैथुन, समुदाय ( वाम० ) । वाममार्गी । पंचमहापातक-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) ब्रह्महत्या, चोरी, सुरापान, गुरु पत्नी-मैथुन और इनके करने वाले व्यक्ति का संग | वि० पंचपातकी । वि० For Private and Personal Use Only (सं०) मछली, इन पाँचों का पंचमकारी -
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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