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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०४३ पंगुल-पंगुला प-संस्कृत और हिन्दी की वर्णमाला पंखापाश-संज्ञा, पु० दे० (हि. पंखा-+ के पवर्ग का पहला अक्षर, इसका उच्चारण पोश फा० ) पंखा टाँकने का वस्त्र, पंखे का स्थान प्रोष्ठ है-"उपूपध्मानीयानामोष्टौ"। गिलाफ़ । पंक-- संज्ञा, पु० (सं०) कींच, कीचड़, लेश। पँखियाँ-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. पंख) छोटे "पंक न रेनु साह अस धरनी "-रामा० ।! छोटे पंख, भूसी के बारीक या सूक्ष्म टुकड़े, पंकन - संज्ञा, पु. (सं०) कमल, जलज । यौ० छोटे पर । " वेग ही बूड़ि गयीं पखियाँ पंकज-श्री-कमल-कांति । अखियाँ मधु की मखियाँ भई मोरी"पंकजराग-संज्ञा, पु० (सं.) पद्मरागमणि । देव०। पंकजटिका-संज्ञा, स्त्री० (सं०) एक वृत्त | पंखी-संज्ञा, पु० दे० (सं० पक्षी) पक्षी, (पि.)। पखेरू, चिड़िया, पाँखी, पतिंगा। संज्ञा, पंकजात-संज्ञा, पु० (सं०) कमल । स्त्री० दे० (हि. पंखा) छोटा पंखा, पँखिया। पंकजासन-संज्ञा, पु. यौ० ( सं० ) ब्रह्मा- पंखुड़ा-संज्ञा, पु० दे० (सं० पक्ष ) पखोर, कमलासन । पखौरा, हाथ और कंधे का जोड़। पकरह-संज्ञा, पु० (सं०) कमल, पंकज । पंखुड़ी-पँखुरी*-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. पंकिल-वि० (सं.) कीचड़-युक्त । पंख) पंखड़ी, पाँखुड़ी, पखुरी, फूल की पत्ती, पंक्ति-संज्ञा, स्त्री. (सं०) पाँति, कतार, | पुष्प-दल " पंखुरी गडै गुलाब की, परिहै श्रेणी, सतर, एक वृत्त (पिं०) दश। गात खरौंट - वि० " " पुषपान की पंखुरी पंगति (दे०)। यो०- पंक्ति-भेद। पायन मैं "-रघु०। पंक्तिपावन--संज्ञा, पु० यौ० (सं०) दान लेने पखेरू-संज्ञा, पु० दे० (सं० पक्षी ) पक्षी, और यज्ञ में बुलाने के योग्य ब्राह्मण । पखेरू, चिड़िया, पंछी। पंक्तिवद्ध-वि० यौ० (सं०) कतार में बँधा पंग - वि० दे० ( सं० पंगु ) लँगड़ा, पँगुना, या रखा हुश्रा, श्रेणीवद्ध । पंगुवा । संज्ञा, पु० (दे०) एक तरह का नमक, पंख- संज्ञा, पु० दे० (सं० पक्ष) पर, डैना। "भई गिरा गति-पंग"--सूर० । मुहा०-(चींटी के) पंख जमना पंगत-पंगति-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० पंक्ति) (उगना)-मरने या हानि उठाने का मौका पाँति, पंक्ति, कतार, सभा, समाज । मिलना या समय पाना। पंख लगना- पंगा-वि० दे० (सं० पंगु) पंगु, पगुथा, पक्षी के वेग के समान वेग वाला होना। पंगुवा, लँगड़ा । स्त्री० पंगी। पंखड़ी-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० पक्ष्य) पँखुरी, पंगु-वि० (सं०) पाँव का लँगड़ा, पंगुया, पंखुड़ी, पाँखुरि (व.) फूल के पत्ते, पुष्प- पंगुवा, लँगड़ा । “पंगु चढहिं गिरवर गहन" दल। -रामा० । संज्ञा, पु० (सं०) शनैश्चर ग्रह, पंखा-संज्ञा, पु० दे० (हि. पंख) बेना, . बात रोग का भेद। संज्ञा, स्त्री० पंगुता । बिनना । स्त्री० अल्पा० पंखी-छोटा पंखा पंगुति-संज्ञा, स्रो० यौ० (सं०) वर्णिक पाँखी, पतिंगा। छंदों का एक अवगुण या दोष ( पिं०)। पंखा-कुली-संज्ञा, पु० दे० यौ० (हि. | पंगुल-पंगुला-वि० दे० (सं० पंगु) पँगुश्रा, पंखा+कुली-म०) पंखा खींचने वाला गुवा, लँगड़ा। “पाँयन ते पंगुला हुआ, नौकर । | सतगुरु मारा बान"--कबी० । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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