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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निसा - SP निष्प्रम १०२७ निष्प्रभ-वि० (सं०) कांति या दीप्ति से रहित, निसद्योस-क्रि० वि० दे० यौ० (सं० प्रभा-रहित, अस्वच्छ, हतमनोरथ । निशि+दिवस ) सदा, सर्वदा, रातोंदिन, निष्प्रयोजन-वि० (सं०) निष्कारण, हेतु- नित्य । “कौन सुनै शिवलाल की बात रहित, बे मतलब, व्यर्थ । संज्ञा, स्त्री० निष्प्र- रहै निसद्योस इन्हीं को अखारो" -- शिव० । योजनता । वि. निष्प्रयोजनीय। निसनेहा - संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० निः स्नेहा) निष्प्रेही-वि० (सं० निस्पृह ) लोभ या स्नेह या प्रेम-रहित स्त्री । पु० निसनेहो। लालच-रहित, निस्पृह ।। | निसबत-संज्ञा, स्त्री० (अ०) सम्बन्ध, ताल्लुक, निष्फल-वि० (सं०) निरर्थक, बे मतलब, लगाव, मंगनी, विवाह, तुलना, मुकाबिला। व्यर्थ, बे फ़ायदा, निष्प्रयोजन, निफल (दे०)। निसयाना*-वि० दे० (हि० नि-+-सयाना) निसंक-निस्संक (दे०)---वि० दे० (सं० बेहोश या बे हवास, अचेत।। निश्शंक ) निडर, निर्भय । वि० (सं०) अशक्त, निसरना-अ० कि० दे० (हि. निकलना) पुरुषार्थ-हीन । निकलना, बाहर जाना या पाना । "निसरी मिसंकट-वि० (सं०) संकट-रहित, विपत्ति- रुधिर धार तहँ भारी"--रामा० । प्रे० रूप मुक्त, अनायास । --निसारना, निसराना, निसरवाना। निसँठ-वि० दे० (हि० नि - सँठ :-- पूंजो) निसर्ग-संज्ञा, पु० (सं०) स्वभाव, प्रकृति, कंगाल, ग़रीब । संज्ञा, स्त्री० (दे०) निसँठई। दान, सृष्टि, प्राकृति, रूप । "निसर्ग संस्कार निसंधाई-संज्ञा, स्त्री० (दे०) संधि या छिद्र- विनीत इत्यसौ-रघु० । “निसर्ग दुर्बोथमरहित, ठोस, दृढ़, पोढ़ा। वोध विक्लवः "--कि.। निसंस-वि० दे० (सं० नृशंस ) दुष्ट, निसवादला--वि० दे० (सं० निः स्वाद) कर। संज्ञा, स्त्री० (दे०) निसंसई, निसंसता। बे मज़ा, स्वाद-रहित, निसवादिल (दे०)। वि० (हि. नि-|-सांस ) मृतक या मुर्दा निसबासर, निसिबासर* ---संज्ञा, पु० यौ० के समान । । दे० (सं० निशिवासर) रात-दिन । क्रि० वि० निसंसना*-अ० क्रि० दे० (सं० निः श्वास) सदा, सर्वदा, नित्य, रातोदिन । "निसवासर बड़े जोर से हाँकना, निःश्वास लेना। निस-निसि8-संज्ञा, सी० दे० (सं० निशा) ताकहँ भलो, मानै राम इतात "-तु०। रात्रि । " निसि-तम-धन खद्योत विराजा" निसस - वि० दे० (सं० निःश्वास) अचेत, --रामा०। बे होश, स्वास-रहित, निसाँस । निसक-वि० दे० (सं० निः शक्त ) निसत्त, निसाँका-वि० दे० (सं० निःशंक) निःशंक, निर्बल, कमजोर। निडर, निर्भय । निसकर, निसाक -संज्ञा, पु० (सं० निसाँस-निसाँसा*-संज्ञा, पु० दे० ( सं० निशाकर ) चंद्रमा । निःश्वास ) लंबी या ठंढी साँस । वि० (दे०) निसत-वि० दे० (सं० निः सत्य ) झूठ, नेदम, मृतप्राय । असत्य, असाँच। निसाँसी-वि० दे० (सं० नि-+ श्वासिन् ) निसतरना-अ० कि० (सं० ) छुटकारा दुखी, व्यस्त, उद्विग्न । या निस्तार पाना। निसा--संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० निशा ) रात, निसतारना- स० कि० दे० (सं० निस्तार ) रात्रि । संज्ञा, स्त्री० दे० (फ़ा० निशाँ) संतोष, मुक्त या निस्तार करना, गुज़र करना, और्य । मुहा-निसाभर-जोर भर के, निर्वाह करना। पूर्णतया। For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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