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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org निडर १००६ नित्यामन्द निडर - वि० दे० ( हि० उप० नि + डर ) | नित्यक्रिया संज्ञा, स्त्रो० यौ० (सं०) नित्यकर्म | "नित्य-क्रिया करि गुरु पहँ श्राये" - रामा० । निर्भय, निश्शंक, साहसी, ढीठ । निडरपन निडरपना- संज्ञा, पु० (हि० निडर - पन -- प्रत्य० ) निर्भीकता, निर्भयता । नि * -- क्रि० वि० दे० (सं० निकट) निकट, समीप, पास । निरयगति - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) वायु, पवन । नित्यता - संज्ञा, त्रो० (सं०) नित्य होने का भाव, अनश्वरता, सदा, विद्यमानता, नित्यत्व | नित्यत्व - संज्ञा, पु० (सं० ) नित्यता । नित्यदान संज्ञा, पु० ० (सं०) प्रतिदिन का कर्त्तव्य या दान | नित्य नियम -संज्ञा, पु० यौ० (सं०) प्रतिदिन का नियमित कर्त्तव्य या कार्य्य, प्रतिदिन की रीति, अचल । नित्य नैमित्तिक कर्म -संज्ञा, पु०या० (सं०) सन्ध्योपासन, श्रग्निहोत्रादि कर्म, ग्रहण - स्नान आदि पुण्य या शुभ कर्म । नित्यप्रति - अव्य० यौ० (सं०, प्रति दिन, सदा, नियम से । नित्य - प्रलय - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) चार प्रकार के प्रलयों में से एक, जीवों के प्रति दिन का मरण । नित्यमुक्त - वि० चिरमुक्त, क्रियावान्, कर्मनिष्ठ । ० (सं०) जीवन-मुक्त, :- अव्य० (सं०) सदा सर्वदा, प्रतिशुक, पिक करते हैं, नित्यः शब्द 16 नित्य यौवन - वि० यौ० (सं०) स्थिर यौवन, सदा जवान या युवा रहने वाला । नित्ययौवना - वि० स्त्री० यौ० (सं०) स्थिर या चिरयौवना, सदा युवा या जवान रहने वाली, द्रौपदी, कुन्ती, तारा आदि । नित्यशःदिन । प्यारे ।" नित्यसम - संज्ञा, पु० (सं० ) निर्विकार, अप्रशस्त उत्तर, प्रयुक्त, खण्डन ( न्या० ) । नित्यानित्यविवेक - संज्ञा, पु० ० (सं०) free or after या नश्वर और अनश्वर वस्तु का विचार । नित्यानन्द संज्ञा, पु० यौ० (सं०) सदा का धानन्द निस में हो, परमेश्वर, एक साधु (बंगाल) । निढाल - निढाला - वि० दे० ( हि० नि + ढाल = गिरा हुआ ) अशक्त, शिथिल थका, सुस्त, freeurs | निढिल - वि० दे० ( हि० नि + ढीला ) कड़ा, कसा हुआ | संज्ञा, स्त्री० निढिलता । नितंन - क्रि० वि० दे० (सं० नितांत ) नितांत, बहुत । नितंब - संज्ञा, पु० (सं०) कमर के पीछे का उभड़ा भाग, चूतड़ । नितंबिनी -संज्ञा, त्रो० (सं०) सुन्दर नितंब वाली स्त्री, सुन्दरी । "नितंबिनीनां भृशमादूधे धृति" - किरा० । नित - श्रव्य० (सं०) नित्य, प्रति दिन, नित्त, नितै (ब्र०) । यौ० - नित-नित, नित-प्रति - । = प्रति दिन, हर रोज नया रहने वाला | सदा नितराम् - - अव्य० (सं०) सदा, सर्वदा I नितल - संज्ञा, पु० (सं०) सात पातालों में से एक (पु० ) । नितांत - वि० (सं०) बहुत, अधिक, एकदम, सर्वथा, बिलकुल, सदैव । नितनया - सदा सर्वदा, हमेशा । निति - अव्य० दे० (सं० नित ) सदा, सर्वदा, प्रतिदिन । नित्य - वि० (सं० ) जो सदा रहे, शाश्वत, अविनाशी । अव्य० प्रतिदिन, सदा । मुहा०-निध्य, निचाहना - नित्य कर्म करना । " नित्य निबाहि गुरुहि। सिर नाये" - रामा० । नित्यकर्म – संज्ञा, पु० यौ० (सं०) प्रतिदिन का कार्य, नित्य क्रिया, पूजन-पाठादि । नित्यकृत्य – संज्ञा, पु० यौ० (सं०) नित्य कर्म । - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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