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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निगोड़ा - - १०.४ निचोल आक्रांत, प्राक्रमित, दुखित, पीड़ित । निघ्न- वि० दे० (सं.) वशीभूत, प्राधीन । " अभ्यास-निगृहीतेन"--रघु०। शिष्ट, प्रायत्त । " तथापि नि नृप ताव निगोड़ा--वि० दे० (हि. निगुरा ) असहाय, कीनैः"-किरा० । अनाथ, प्रभागा, दुष्ट, दुराचारी, दुष्कर्मी, निचय-संज्ञा, पु० (सं०) समूह, संचय, नीच । स्त्री. निगोडी। " चाप निगोड़ो निश्चय । अबै जरि जाव. चढ़ा तो कहा न चदौ तो निचल*-वि० दे० ( सं० निश्चल ) अचल, स्थिर, अटल। निग्रह-संज्ञा, पु० (सं०) रोंक, दमन, अव- | निचला-वि० दे० (हि. नीचे--ला-प्रत्य० ) रोध, बंधन, फटकार, सीमा, दंड । नीचे वाला, नीचे का। स्त्री० निचली। निग्रहना*-स० क्रि० दे० (सं० निग्रह ) । वि० दे० (सं० निश्चल) शांत, अटल, स्थिर, रोकना, पकड़ना, फटकारना, दंड देना। अचल । निग्रहस्थान-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) जब वादी निचाई---संज्ञा, स्त्री० ( हि. नीच ) नीचापन, उलटी-पुलटी या बेसमझी की बातें कहने नीचता, कमीनापन, दुष्टता। " नीच लगे तो विवाद रोक दिया जाता है क्योंकि निचाई नहि तजै"-० । यह पराजय है, इसी को निग्रह-स्थान निचान -- संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. नीचा ) कहते हैं, ये २२ हैं ( न्या०)। नीचापन, ढाल, दुलान । निग्रही-वि. ( सं० निग्रहिन् ) रोकने, दबाने निचिंत-निचीत-वि० दे० (सं० निश्चित ) या दंड देने वाला। सुचित बे खटके, निश्चित । “जाको घर है निघंटु-संज्ञा, पु० (सं०) वेद के शब्दों का गैल मों, सो क्यों सोव निचीत"-- कबी०। कोश. शब्द-संग्रह मात्र। निचुड़ना, निचुरना--अ० क्रि० दे० (सं० निघटत-अ० क्रि० (दे०) कम या न्यून होते नि+व्यवन ) चुना, टपकना, गरना, दबाव ही. घटते ही। डालने पर रस निकल जाना। निघटना*-अ० क्रि० दे० (हि० घटना ) निचै--संज्ञा, पु० दे० (सं० निचय ) समूह, घटना, चुकना, समाप्त हो या निबट जाना। राशि। 'घद गौ तेल निगट गई बाती'- कबी० । निचोड़-निचोर-- संज्ञा, पु. दे. (हि. निघता-क्रि० वि० दे० (हि. निघटना) घटा, निचोडना) सारांश, सार, रस, सत. खुलासा, कम हुा । स्त्री० निघटी। निघटाना-स० कि० दे० (हि. निघटना) घट निचोड़ना--स० कि० दे० ( हि० निचुड़ना) वाना, कम कराना । प्रे० रूप निघटावना, किसी गीली या रस या पानी-भरी वस्तु को निघटवाना। निघरघट--वि० दे० यौ० ( दि० नि=नहीं दवा या ऐंठ कर रस या पानी गिराना, किसी का पदार्थ का मूल तत्व या सारभाग निकाल ठिकाना कहीं भी न हो, निर्लज्ज । मुहा० लेना. सब हर लेना, निचोरना (दे०)। निघरघट देना-निर्लज्जता से झूठी सफाई निचोना*-स० कि० दे० (हि. निचोड़ना) देना। निचोड़ना, "कहा निचोवै नग्न जन"-०॥ निघरघटा- वि० दे० (हि. निघरघट ) निवारना*-- सं० कि० दे० (हि. निचोड़ना) जिसके घर-द्वार न हो । स्त्री निघरवटी। निचोड़ना। निघरा-वि० दे० (हि.) जिसके घर-बार निचोल-संज्ञा, पु० (दे०) औरतों की चादर या प्रोदनी। निष्कर्ष । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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