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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निंदना निभाउ, नियांव निंदना-स० कि० दे० (सं० निंदन) निंदा निःश्रेयस-वि० (सं० ) कल्याण, मुक्ति, करना, बुराई या बदनामी करना। मोक्ष, भक्ति, विज्ञान । " यतोऽभ्युदय निंदनीय-वि० (सं० ) बुरा, गो, निन्दा निःश्रेयस सिद्धिः स धर्मः"-वै०६०। करने के योग्य। निःश्वास-संज्ञा, पु० (सं०) नाक से निंदरना-स० कि० दे० (हि० निंदना) निंदा निकलने वाली या निकाली वायु, साँस । करना, निंदना। "निश्वास नैसर्गिक सुरभि यों" ---मै०श० । निंदरिया - संज्ञा, स्त्रो० दे० ( दे. निद्रा) निःसंकोच-क्रि० वि० (सं०) बेखटके, नींद, निंदिया (ग्रा.)। बेधड़क, बिना संकोच । निंदा-संज्ञा, स्रो० (सं०) किसी की बुराई निःसंग--वि० (सं०) निर्लिप्त, स्थार्थ-बिना, करना, अपवाद, बदनामी। "नहँ कहुँ निंदा बेलगाव । सुनहि पराई"-रामा० । (दे०) नींद। निःसंतान- वि० (सं०) लावल्द, संताननिंदासा-वि० दे० (हि. नदि+आसा- रहित, निपता, निपुत्री, निःसंतति । प्रत्य०) उनींदा, नींद से व्यथित, जिसे नींद | निःसंदेह--वि० (सं०) बेशक, संदेह-रहित । भारही हो। निःसंशय-वि० ( सं०) निःसंदेह, बेशक । निदास्तुति-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) स्तुति निःसत्व-वि० (सं०) सार या तत्व-रहित । के बहाने निंदा व्याजस्तुति, हजोमली(फा०)। निःसरण--संज्ञा, पु. ( सं० ) रास्ता, मार्ग, निदित--वि० (सं०) बुरा, क्षित, खोटा, जिस निकास, निर्वाण, मरण, मुक्ति। की लोग निदा करें। निःसीम-वि० (सं०) अपार, अनंत, असीम । निदिया -संज्ञा, स्त्री० दे० (हि० नींद) नींद। निःसृत--वि० (सं०) निकला हुआ, वहि त । निद्य–वि. (सं०) निंदनीय, निंदा करने निःस्पृह-वि० (सं०) आकांक्षा, अभिलाषा योग्य, खोटा, दूषित, बुरा। या इच्छा-रहित, निर्लिप्त, निलोभ । निब-निंबा-संज्ञा, स्त्री० (सं०) नीम का पेड़, । निःस्वार्थ--वि० (सं०) बेमतलब, परोपकार, नींबी (ग्रा०) । "जो मुख नींब चबाय"- स्वार्थ-रहित । वृ०। नि--अव्य० (सं० ) एक उपसर्ग है जिसके निंबार्क-संज्ञा, पु० (सं०) निबादित्य, कारण इन अ की विशेषता होती है । प्राचार्य। समूह या संघ, अधोभाव, अत्यन्त, प्रादेश, निंबू-संज्ञा, पु. (सं०) नींबू, निबुआ नित्य, कौशल, बंधन, अंतर्भाव, समीप, (ग्रा.) निबू। दर्शन । संज्ञा, पु० (सं०) निषाध स्वर का संकेत । निः-अव्य० (स० निस) एक उपसर्ग-बिना, निरनिय -अन्य० दे० (सं० निकट) नहीं, जैसे कारण से निष्कारण, चय से नेरे निअरे (ग्रा०) पास, निकट, समीप । निश्चय। वि० (दे०) समान, तुल्य, बराबर । निःशंक, निश्शंक-वि० यौ० (सं०) निडर, निअराना - नियराना-स० कि० दे० निर्भय, बेधड़क, प्रशंक। (हि. निमर) पास, समीप या निकट जाना निःशब्द--वि० (सं० ) शब्द-रहित, शान्त ।। या पाना । अ० कि० (दे०) निकट आना या निःशेष-वि० (सं० ) संपूर्ण, समस्त, सब, पास होना या पहुँचना । "बरसहि जलद सर्व, बिना कुछ शेष के। भूमि निराए"-रामा० । निःश्रेणी-- संज्ञा, स्त्री. (सं०) नसेनी (दे०) निपाउ, नियाव -संज्ञा, पु० दे० (सं० सीकी, सिड्ढी, सिढिया (मा.)। न्याय ) न्याय, न्याव (दे०)। For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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