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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . vii थीं। 1877 में कनिंघम ने अशोक के अभिलेखों को प्रकाशित किया और उसके अगले साल फ्लीट ने गुप्तों और उनके समकालिकों के अभिलेख प्रकाशित कराये । - 19वीं शताब्दी के अन्तिम दशक में दो विद्वान उस काल तक उपलब्ध सारी पुरालिपिक सामग्री का समग्र अध्ययन करने में संलग्न थे। उनके नाम थे-- गौरीशंकर हीराचन्द ओझा और श्री ब्यूलर । 1894 ई० में प्राचीन लिपिमाला नाम से ओझा जी ने एक विस्तृत पुस्तक प्रकाशित की जिसमें प्रथम बार एक स्थान पर समस्त भारतीय लिपियों का सुसंबद्ध अध्ययन है। हर्ष की बात यह है कि यह ग्रंथ हिंदी में प्रकाशित हुआ था। इसके दो वर्ष उपरांत ही ब्यूलर की प्रसिद्ध पुस्तक Indische Palaeographie प्रकाशित हुई जिस का अनुवाद यहाँ प्रकाशित किया जा रहा है। ___ओझा, ब्यूलर, हार्नले, हुल्श आदि इस काल के विद्वानों का मुख्य उद्देश्य अभिलेखों का यथातथ रूप में प्रकाशन था । तब तक शुद्ध प्रतिलिपियाँ प्राप्त करने के वैज्ञानिक उपकरणों की ईजाद नहीं हुई थी। ओझा जी ने तो अभिलेखों के सहारे अपने हाथ से ही उनकी प्रतिलिपि ली थी। ब्यूलर ने मूल अभिलेखों से अक्षर काटकर छापे हैं। इसलिए उसका कार्य अधिक वैज्ञानिक है। इस काल के विद्वानों ने लिपियों के वर्गीकरण का भी प्रयत्न किया। वर्णों के अंतरों को ध्यान में रखकर हुल्श ने पहली बार उनके क्षेत्रीय-विभाजन का प्रयत्न किया। ओझा जी ने इस वर्गीकरण को स्वीकार नहीं किया । उनकी दृष्टि में क्षेत्र और काल के कारण अक्षरों में रूप-परिवर्तन हो सकते हैं, किंतु इसे वे आवश्यक नहीं मानते । ब्यूलर ने प्राचीन भारत के लिपियों के अध्ययन को और भी आगे पहुँचाया है । ओझा के विरुद्ध वह भारतीय लिपियों के क्रम-विकास को स्वीकार किया है। उसने क्षेत्र और काल के आधार पर उनका और भी सूक्ष्य वर्गीकरण किया है। उसने स्मारक रूपों और पांडुलिपियों में प्रयुक्त लिपियों के लिए अलग-अलग कालमान देकर इस प्रक्रिया को और भी वैज्ञानिक बना दिया है । इस प्रकार Indische Palaeographie के रूप में हमें भारतीय पुरालिपि के क्षेत्र में प्रायः 100 वर्षों के अध्ययन के चरमोत्कर्ष के दर्शन होते हैं। ब्यूलर के उपरान्त इस देश के विभिन्न भागों से बहुत बड़ी संख्या में अभिलेख मिले हैं। इनके अतिरिक्त भारतीय पुरालिपि के क्षेत्र में सिंधु-घाटी की लिपि के रूप में अब तक की सबसे बड़ी खोज भी ब्यूलर की मृत्यु के उपरांत ही हुई है। किंतु प्रायः पचास वर्षों के अनेक विद्वानों के अध्यवसाय और प्रयत्न के बावजूद अभी तक इस लिपि का कोई सर्वमान्य निर्वचन नहीं हो पाया है। ब्यूलर के बाद इस क्षेत्र में जो अनेक प्रकाशन हुए हैं, उनमें प्रमुख हैं (1) श्री For Private and Personal Use Only
SR No.020122
Book TitleBharatiya Puralipi Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGeorge Buhler, Mangalnath Sinh
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1966
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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