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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतीय पुरालिपि-शास्त्र 8. शक-कालीन ट केवल एक जगह मिला है, संयुक्ताक्षर स्टे (22, XIII) में । इसमें ट का पुराना रूप ही सुरक्षित है जिसमें बाईं ओर एक डंडा लगता है; (मिलाइए 15, III । कुषान कालीन खरोष्ठी में दायें-बायें के दो डंडों 15, I) की जगह एक सीधी रेखा बनाते हैं जिससे ट थ बन जाता है, (15, X-XII)। टु (15, XI) में ऊपर की तरफ की छोटी लकीरें जैसा कि फ्लीट के सुइ बिहार अभिलेख की छाप से प्रकट होता है, ताँबे में जंग लगने की वजह से बन गई हैं। जिस शब्द में यह अक्षर आता है उसका ठीक पाठ कुटुबिनि है न कि किछुबिनि (हार्नली)। ___9. बाद की सभी खरोष्ठियों में ठ (16, VIII, X, XI) के दूसरे डंडे के आखिर में लगने वाला हुक नहीं है। 10. इंडो-ग्रीक सिक्कों पर मिलने वाले त (20) का रूप र से बहुत मिलता-जुलता है । शक-अभिलेखों में यह र के आकार का तिहाई होता है । फिर, कुषान खरोष्ठी में भी दोनों अक्षर मिलते-जुलते हैं। 11. शक दो (22, IX) का द निश्चय ही 22, II के रूप से निकला है । 22, VIII और X के रूप अशोक के आदेशलेखों के सामान्य द से निकले हैं। इसके कुषान कालीन रूप (22, XI) में सिर पर नीचे की ओर एक अंतर्मुखी भंग है। 12. गोंडोफरस के अभिलेख और उसके और एजिलिसस के सिक्कों पर (गार्ड० बि. म्यू. कै०. पृ. 94 सं. 22) एक विचित्र चिह्न मिलता है (26, X) जिसे फ पढ़ा गया है किन्तु संभवतः यह है फ जैसा कि ओ. फैके ने त्सा.डे.मी.गु. 1,603 में कहा है। 13. कुषान-कालीन खरोष्ठी में भ के सिर की आड़ी रेखा के दायें किनारे एक खड़ी रेखा मिलती है। कभी-कभी सिर की लकीर पाश्वांग से जुड़ी रहती है जैसे कु (6, XI) में। __14. इंडो-ग्रीक सिक्कों पर सामान्यतया म का पूरा रूप (29, VI) ही मिलता है। इसकी तिरछी लकीर के स्थान पर बाद के सिक्कों पर एक बिंदी मिलती है (29, VII)। शक और कुषान खरोष्ठियों के मु (29, IX, XII) में म बगल में है। अर्ध वृत्त का दायाँ भाग काफी ऊपर को उठ गया है और बायाँ नीचे को झुक गया है; तुलना कीजिए बाद के मुं (33, XIII) से। ___15. कुषान-अभिलेखों में य की शक्ल प्रायः एक भंग या समचतुर्भुज की-सी रहती है, जिसके नीचे का हिस्सा खुला है (30, XI-XII) । 56 For Private and Personal Use Only
SR No.020122
Book TitleBharatiya Puralipi Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGeorge Buhler, Mangalnath Sinh
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1966
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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