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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir खरोष्ठी की उत्पत्ति (यूटिंग, TSA, स्त० 46, 47) और हेलू में भी हुआ है। सं. 15, प, स्त० III, a=फे, स्त० I (तइस्मा)। इसे दायें से बायें उलट दिया गया है, ताकि इसे अ से अलग पहचाना जा सके। स्त० III, b वाला प का रूप अधिक प्रयोग में आता है। इसमें भंग को और नीचे ढकेल दिया गया है। सं. 16. च, स्त० III,=त्सादे, स्त० I, a, b (तइस्मा) जैसे किसी रूप के न्यून कोण से निकला है। दायीं ओर के दूसरे हुक को छोड़ दिया गया है। (दे० प्रारंभिक टिप्पणी, 2) सिर के नीचे एक हुक लगा दिया गया है, क्योंकि खड़ी लकीर का निर्माण अलग से हुआ है । स्त० II, b का त्सादे का समान रूप इसलिए बना क्योंकि सिरे की दाई लकीर का निर्माण अलग से हुआ है और इसे खड़ी लकीर तक खींच दिया गया है। सं. 17, ख, स्त० III,=कोफ, यह स्त० I, a, b (तइस्मा) जैसे किसी रूप से निकला है। बीच की लटकन के स्थान पर बायीं ओर की कमर की लकीर को और बढ़ा दिया गया है। इसी प्रकार तइस्मा वाले रूप (यूटि० TSA स्त० 10) में लटकन को अक्षर के दायें सिरे पर रख दिया गया है। . सं. 18, र, स्त० III= रेश, स्त० I, a, b (सक्कारा) । इस अक्षर के निर्माण में मूल अक्षर की दापों ओर का उभार एकदम गायब कर दिया गया है। सं. 19, ष, स्त० III=शिन, स्त० I (तइस्मा) इस अक्षर को सिर के बल उलट दिया गया है, क्योंकि ऐसे चिह्नों के प्रति अरुचि थी जिनके सिरों में ऊपर की ओर उठी हुई दो से अधिक लकीरें हों (देखि० प्रारंभिक टिप्पणी, 2) और बीच की पाई को लंबी कर दिया गया है क्योंकि लंबी दुमों वाले अक्षरों के प्रति झुकाव था। ___सं. 20. त, स्त० III=ताव, यह अक्षर स्त• I, a (असीरियाई बाटों से) या स्त० I, b (सक्कारा) जैसे किसी अक्षर से बना है। इसमें बीच के डंडे को सिर पर लगा दिया गया है। जैसे स्त० II, a में। साथ ही नए चिह्न को प (स. 15) से अलग करने के लिए दायें से बायें को पलट दिया गया है, इसी प्रकार व और र से (सं. 6, 18) से अलग करने के लिए और चौड़ा कर दिया गया है। पुराना रूप और बीच के चरण थ (सं. 20, स्त० IV, a) और र (सं. 20 IV, b) में देखे जा सकते हैं। इनमें मल ताव सुरक्षित है। ट (सं. 20, स्त० IV C) में भी डंडा ऊपर को लगा है; मिला० नीचे आ, 1, इ और आ, 2 . (आ) संजात चिह्न : 1. महाप्राण ध्वनियाँ-महाप्राणता के लिए एक भंग या हुक लगा देते 45 For Private and Personal Use Only
SR No.020122
Book TitleBharatiya Puralipi Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGeorge Buhler, Mangalnath Sinh
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1966
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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