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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir खरोष्ठी लिपि ३७ 35° उत्तर, अक्षांश के बीच के हैं। ये प्रायः पूर्वी अफगानिस्तान और उत्तरी पंजाब के उस प्रदेश में मिले हैं जिसका प्राचीन नाम गांधार था। खरोष्ठी के प्राचीनतम अभिलेख उन जिलों में मिले हैं जिनकी राजधानियाँ सिंध के पूरब तक्षशिला (शाहडेरी) और उसके पश्चिम पुष्कलावती या चरसादा (हश्तनगर) थीं। इनके दक्षिण-पश्चिम बहावलपुर में मुल्तान के निकट और दक्षिण में मथुरा से भी अभिलेख मिले हैं । खरोष्ठी का कोई अकेला शब्द या अक्षर भरहुत, उज्जैन और मैसूर (अशोक के शिद्दापुर के आदेशलेख में)98 में भी मिला है। खरोष्ठी अक्षरों वाले सिक्के, उत्कीणित पत्थर और हस्तलिखित पुस्तकें तो और उत्तर और उत्तर-पूर्व तक चली गई हैं। इस समय जो प्रलेख-प्रमाण उपलब्ध हैं उनसे यही प्रतीत होता है कि खरोष्ठी लिपि ई. पू. चौथी शती से ईसा की लगभग तीसरी शती तक प्रचलित थी। इसके सबसे पुराने अक्षर ईरानी सिग्लोई पर मिलते हैं (देखि० पृष्ठ ३९) और सबसे बाद के संभवतः गांधार-मूर्तियों और कुषान अभिलेखों पर । 668 ई. के फवाङशुलिङ के उल्लेख से विदित होता है कि खरोष्ठी लिपि का ज्ञान बौद्धों ने इसके काफी बाद तक सुरक्षित रखा । ऊपर (दे० पृष्ठ ३) __ अभी तक खरोष्ठी लिपि (1) अभिलेखों में, (2) धातु-पट्टों और वर्त्तनों पर, (3) सिक्कों पर, (4) उत्कीणित पत्थरों पर और (5) अफगानिस्तान 98. बु., इं. स्ट III, 2, 47-53; क., आ., स. रि. ii, 82 तथा आगे, फल. 59, 63; V, 1 तथा आगे, फल. 16, 28; वि., ए. ऐ. 55 तथा आगे; क., क्वा. ऐ. इं. 31 तथा आगे । 99. बु., इ. स्ट. III, 2, वही; खरोष्ठी के प्रयोग की अंतिम सीमा का निर्धारण कठिन है, क्योंकि कनिष्क और उसके दो उत्तराधिकारियों की तिथि निश्चित रूप से ते नहीं हो पायी है। इन्हें सिल्वां लेवी ईसा की प्रथम शताब्दियों में रखते हैं (ज. ए. 1897, i, 1 तथा आगे)। ऊपर जो तिथि-सीमा दी गयी है उसका एक आधार यह अनुमान है कि कनिष्क की तिथियाँ शक संवत में है या सेल्यूकस के संवत की चौथी शती में । मैं अभी तक यही मानता हूँ। इसका कारण यह नहीं है कि मैं इसे अकाट्य मानता हूँ । बल्कि इसका आधार वह है जो वी. त्सा. कुं. मो., 169 में दिया गया है। संवत् 200 और 276 या 286 के (हश्तनगर की मूत्ति) के अभिलेख के अक्षर कुषाण अभिलेखों के अक्षरों से अधिक पुराने मालूम पड़ते हैं । डॉ. ब्लाख की एक चिट्ठी के अनुसार प्रो. हार्नली ने गांधार की एक मूर्ति पर इसी अज्ञात संवत् की चौथी शती की एक तिथि पढ़ी है। 37 For Private and Personal Use Only
SR No.020122
Book TitleBharatiya Puralipi Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGeorge Buhler, Mangalnath Sinh
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1966
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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