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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतीय पुरालिपि-शास्त्र कठिन नहीं है जिनसे सेमेटिक चिह्नों को भारतीय चिह्नों में बदला गया था । फलक II की प्राचीन भारतीय वर्णमाला की परीक्षा से उसकी ये विशेषताएं प्रकट होती हैं : 1. जितना भी संभव था अक्षर खड़े लिखे गये हैं। ट, और ब को छोड़कर अन्य अक्षरों की ऊंचाई भी समान है। 2. अधिकांश अक्षर खड़ी रेखाओं से बने हैं जिनमें ज्यादातर पैरों में जोड़ लगे हैं। ये जोड़ कभी-कभी पैर और सिर दोनों में, पर बिरले ही कमर में लगते हैं। लेकिन ये जोड़ केवल सिरे पर नहीं लगते। 3. अक्षरों के सिरों पर ज्यादातर खड़ी रेखाओं के अंत, उससे कम नन्हीं पड़ी लकीरें, उससे भी कम नीचे की ओर खुलने वाले कोणों के सिरों पर भग होता है। और, नितांत अपवादस्वरूप म में और झ के एक रूप में दो रेखाएं ऊपर की ओर उठती हैं। सिरों पर कई कोण, अगल-बगल में जिसमें खड़ी या तिरछी रेखा नीचे की ओर लटकती हो, नहीं मिलते । इसी प्रकार सिरों पर त्रिभुज या वृत्त भी जिसमें लटकन रेखा लगी हो, नहीं मिलते। इन विशेषताओं के जो कारण हैं उनमें एक भारतीयों की पंडिताऊ नियमनिष्ठता है । यह प्रवृत्ति उनकी अन्य कृतियों में भी मिलती है। फिर वे ऐसे चिह्न बनाना चाहते थे जो नियमित रेखाओं के निर्माण के अनुकूल हों। वे भारी सिरों वाले अक्षरों को नापसन्द करते थे। इस आखिरी विशेषता का कुछ कारण यह भी है कि आदिकाल से भारतीयों ने अपने अक्षर ऐसे बनाये हैं जो किसी काल्पनिक या वास्तविक सिरो रेखा से लटकते हैं। और कुछ इस कारण भी क्योंकि उन्होंने स्वरचिह्नों का प्रयोग शुरू किया, जो अधिकतर व्यंजनों के सिरों पर पड़े रूप में जुड़ते हैं। ऐसे चिह्न जिनमें खड़ी रेखाओं के अन्त ऊपर को हों इस लिपि के सबसे अनुकूल पड़ते थे । हिन्दुओं की इन पसन्दों और नापसन्दों के कारण अनेक सेमेटिक अक्षरों के भारी सिरों को छोड़ देना पड़ा है। इसके लिए चिह्नों को सिर के बल उलट दिया गया है, या इन्हें बगल में डाल दिया गया है; कोण खोल दिये गये हैं या ऐसा ही कुछ कर दिया गया है। लिखने की दिशा में परिवर्तन करने से एक दूसरा परिवर्तन भी जरूरी हो गया, अब ग्रीक की तरह इसमें भी चिह्न दायें से बायें घुमा देने पड़े हैं। 80. मिला, वेरूनी की इंडिया, 1, 172 (सचाऊ) 22 For Private and Personal Use Only
SR No.020122
Book TitleBharatiya Puralipi Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGeorge Buhler, Mangalnath Sinh
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1966
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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