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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतीय पुरालिपि-शास्त्र कनिंघम के मत से पहले कुछ अन्य विद्वान् भी सहमत थे । पर उनकी राय में दोष यह है कि वे एक ऐसे भारतीय बीजाक्षरी चित्रों के प्रयोग की पूर्व कल्पना कर लेते हैं जिनका अब तक कोई नामोनिशान नहीं मिला है। दूसरी ओर एरण के सिक्के का लेख किसी दूसरे मत के सही होने का इशारा करते है, जिसे अब लगभग सभी मान चुके हैं कि ब्राह्मी अक्षरों के आदिरूप सेमेटिक अक्षर ही थे। एरण के सिक्के का लेख दायें से वायें चलता है और इसके अक्षरों का मुंह विपरीत दिशा में मुड़ा है । अशोक के आदेश-लेखों में भी यदा-कदा ऐसा हुआ है। भट्टिप्रोल के अभिलेखों में ऐसा अपेक्षाकृत अधिक बार हुआ है। ___ अन्य चार प्रस्थापनाओं में हेलेवी का सिद्धान्त असंभाव्य होने के कारण तत्काल त्याज्य है, क्योंकि इतः पूर्व हमने जिन साहित्यिक और पुरालिपिक प्रमाणों की चर्चा की है उनसे इसका मेल नहीं बैठता। ऊपर की चर्चा के अनुसार मौर्यकाल के प्रारम्भ से कई शताब्दी पहले से ही ब्राह्मी व्यवहार में आती थी। जिस काल के प्राचीनतम भारतीय अभिलेख प्राप्त हैं, उस समय भी ब्राह्मी लिपि का इतिहास काफी पुराना था । वेबर ब्राह्मी की उत्पत्ति प्राचीनतम उत्तरी-सेमेटिक लिपि से मानता है और डीके और टेलर एक प्राचीन दक्षिणी सेमेटिक लिपि से। इन दोनों मतों में चयन करना और भी कठिन है। इन दोनों में हम किसी भी मत को प्रागानुभव के तर्क से असंभव नहीं कह सकते । क्योंकि, आधुनिक काल में जो अनुसंधान हुए हैं, उनसे इस विश्वास की संभावना बढ़ गई है कि सैबियन लिपि भी काफी पुरानी है। इन अनुसंधानों से यह निष्कर्ष भी निकलता है कि यह लिपि भारत में जो पुराने-से-पुराने अभिलेख मिले हैं उनसे पुरानी ही नहीं है, बल्कि यह उस काल में भी वर्तमान थी जिस काल के लिए भारत में लेखन-कला के अस्तित्व का कोई प्रमाण नही मिलता । 8 इन परिणामों के फलस्वरूप डीके और टेलर से भिन्न प्रश्न को जरा दूसरे ढंग से रखना पड़ेगा। अब प्रश्न यह नहीं है कि ब्राह्मी के बीज सैवियन की किसी अज्ञात पूर्ववर्ती लिपि में ढूढे जा सकते हैं या नहीं, बल्कि प्रश्न यह है कि सैवियन लिपि का जो रूप आज ज्ञात है, ब्राह्मी सीधे उससे निकली है या नहीं ? किसी भी लिपि की उत्पत्ति खोजने में तीन मौलिक सूत्रों का ध्यान रखना ___78. माई त्मान और डी. एच. मूलर, Sab, Denkmaeler (in DWA. Phil. Hist. Cl. 31) में पृ. 108 तथा आगे 20. For Private and Personal Use Only
SR No.020122
Book TitleBharatiya Puralipi Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGeorge Buhler, Mangalnath Sinh
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1966
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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