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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ब्राह्मी की उत्पत्ति १७ एरण के सिक्के पर जो लेख है वह बायें से दायें चलता है । 3 इससे ब्राह्मी का पूर्व इतिहास समझने में मदद मिलती है । इसका स अक्षर पुराने रूप वाला है । इसमें बगल की लकीर सीधी है । किन्तु म का रूप बाद का है । इसका सिरा अर्द्धवृत्ताकार है । घ बायीं ओर मुड़ा है । यह सिक्का संभवतः उस समय का है जब ब्राह्मी दायें से दायें और बायें से दायें दोनों तरह लिखी जाती थी । सिक्कों के लेख प्रायः पुरागत रूपों में लिखे जाते हैं, जो प्रचलित नहीं भी होते । इसका ध्यान रखते हुए कनिंघम (क्वायस आफ एशियन्ट इंडिया, 101 ) के इस विचार से सहमत होना ही पड़ता है कि यह सिक्का मौर्य काल से पहले का है । इसकी तिथि यदि 100 ई० पू० नहीं तो ई० पू० चौथी शताब्दी के मध्य अवश्य है । मौर्यों से पहले ब्राह्मी संभवतः हलावर्त शैली में लिखी जाती थी, धीरे-धीरे इसका प्रचलन बंद हो रहा था । क्योंकि अशोक के आदेश - लेखों में थोड़े ही चिह्न दायें से बायें लिखने के हैं । जौगढ़ और धौली के ओ और जौगढ़ और दिल्ली -- शिवाशिक के दुर्लभ ध ( फल० II, 8, VI, और 26, V, VI ) 04 उलटे लिखे हैं । इस सिक्के के सिलसिले में पटना की मुहरों का (कनि० आ० स०रि० 15, फल० 3, 1, 2 ) का उल्लेख भी जरूरी है । ये मुहरें संभवतः मौर्यों से पहले की हैं। पहली मुहर पर नदय (नंदाय ) "नंदा की ( मुहर ) " लेख खुदा है । इसमें द दायें को खुलता है । दूसरी मुहर के लेख अगपलश ( अंगपालश) में अ अपने मूल रूप में है । ( फलक II, 1, I) भट्टिप्रोलु की धातु-मंजूषाओं की द्राविड़ी से ब्राह्मी के इतिहास के बारे में महत्वपूर्ण नतीजे निकलते हैं । इनका उल्लेख पहले हो चुका है । इस वर्णमाला में अशोक के लेखों के दक्षिणी भेद के अनुरूप बहुत से अक्षर तो मिलते ही हैं, साथ ही इसमें ( 1 ) ध, द और भ के तीन रूप ऐसे हैं जो दायें से बायें को लिखे गये हैं; (2) च ज और ष के रूप अशोक के आदेशलेखों और एरण के सिक्के से पुराने हैं; (3) ल और ळ के दो चिह्न हैं जो अपने मूल सेमेटिक से निकले हैं । (4) घ के लिए एक नया चिह्न है जो ग से निकला है, ब्राह्मी के मात्रिका घ का त्याग मिलता है । अगले पैराग्राफ में 63. क, क्वा. ऐ. इं. फल० 11, 18 और इस पुस्तक का फल. II, स्त. I 64. जैसा श्री ए. वी. स्मिथ ने मुझे बतलाया है कि यदि क, क्वा, मि. ई. 27 के अनुसार मिहिरकुल के कतिपय सिक्कों पर दायें से बायें को अभिलेख है तो यह विशिष्टता सासानी प्रभाव के कारण होनी चाहिए । 65. फल० II, स्त० XIII-XV 17 For Private and Personal Use Only
SR No.020122
Book TitleBharatiya Puralipi Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGeorge Buhler, Mangalnath Sinh
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1966
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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