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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लेखन-उत्कीर्णक २०९ ऐसे मामले अपवाद स्वरूप ही मिलेंगे। दूसरे स्थानों पर कारीगर भी कभी-कभी कहते हैं कि प्रलेख की स्वच्छ प्रति उन्होंने ही बनायी है ।587 ___ ताम्रपट्ट की तैयारी के बारे में वक्तव्य और कम यथातथ और अस्पष्ट हैं। अभिलेखों में केवल उस व्यक्ति का ही नाम लेते हैं जिसने प्रलेख की रचना या उसे लिखा। इस रूप में केवल अमात्य, संषिविहिक, रहसिक जैसे ऊँचे अधिकारी या सेनापत्ति, बलाधिकृत का ही उल्लेख मिलता है। कभी-कभी यह भी मिलता है कि प्रारूप किसी सत्रधार 588 या त्वष्टा5-80%Dसंगतराश ने बनाया। सच तो यह है कि उसने मात्र दानपत्र पर लेख खोदा था । कल्हण के अनुसार690 कश्मीरी राजाओं के यहाँ इस कार्य के लिए एक विशेष अधिकारी ही होता था जिसकी उपाधि पट्टोपाध्याय-स्वत्वलेखों (की तैयारी) का शिक्षक थी। वह अक्षपटल कार्यालय में काम करता था। स्टीन के मत से यह कार्यालय महालेखापाल का था पर मेरे विचार से यह रेकर्ड दफ्तर था। शासनों में बहुत कम ही, सो भी उत्तर कालों में उन लोगों के नाम मिलते हैं जिन्होंने उनका उत्कीर्ण या उन्मीलित किया। उत्कीर्णकों के रूप में अनेक कारीगरों पीतलकारों, लोहकारों या अयस्कारों601 जैसे, कसर (आधुनिक कसेरे), सूत्रधार :2 (संगतराश), हेमकार या सुनार-3, शिल्पिन:94 या विज्ञानिक35 (कारीगर) का उल्लेख है। कलिंग के शासनों में इनके बदले अश 587. मिला. इं. ऐ. XI, 103, 107, XVII, 140. 588. इं. ऐ. XIX, 248; ज. बा. बां. रा. ए. सो. XIII, 4, 589. ए. ई. III, 158, 250 में कहा गया है कि त्वष्टा वीरणाचार्य ने अच्युतराय और वेङ्कटराय तथा सन् 1556 ई. के सदाशिवराय के दानपत्र लिखे हैं । 590. राजतरङ्गिणी, V, पृ. 397 तथा आगे (स्टीन). 591. ए. ई. IV, 170, ; इं. ऐ. XVII, 227, 230, 236. 592. ई. ऐ. XV, 360. 593. ए. ए. ई. III, 314; इं. ऐ. XVIII, 17. ., 594. इं. ऐ. XVII, 234. 595. इं. ऐ. XVI, 208; लोहकार कूके को इसी प्रकार बीनाणि विजानिक कहा गया है, इं. ऐ. XVII, 230. 209 For Private and Personal Use Only
SR No.020122
Book TitleBharatiya Puralipi Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGeorge Buhler, Mangalnath Sinh
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1966
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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