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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लेखन-सामग्री ऐसी स्याही के उल्लेख ब्राह्मण ग्रंथों में भी, जैसे पुराणों के ग्रंथ-दान के प्रसंगों में हैं ।545 खड़िया के अलावा (दे. ऊपर 34, आ) लाल स्याही के बदले रक्तसिंदूर और हिंगुल का प्रयोग भारत में अति प्राचीन काल से होता आया है।46 औ. कलम, पेंसिल आदि "लिखने की उपकरणिका' का सामान्य नाम 'लेखनी' है। इसमें स्टाइलस, पेंसिल, कूची, नरकट और लकड़ी की कलम सब कुछ सम्मिलित हैं। रामायणमहाभारत में भी इसका उल्लेख है ।547 ललित-विस्तर में उल्लिखित वर्णक तो सीधी-सादी छोटी-सी लकड़ी है, जिसके मुंह पर किसी प्रकार की तिरछी कटाई नहीं होती थीं। भारतीय स्कूलों के बच्चे ऐसी ही बनायी हुई कलमों से अब भी पटिया पर अक्षर लिखने का अभ्यास करते हैं (दे. ऊपर पृ. 11) इसके एक अन्य भेद वणिका का भी उल्लेख कोषों में है । ऊपर उल्लिखित दशकुमार चरित में वर्णवर्तिका शब्द आया है (दे. ऊपर टि. 499) । निश्चय ही यह कूची या रंगीन पेंसिल है क्यों कि वर्तिका से रेखांकन, या चित्रकर्म का कार्य करते थे, यह अन्य वर्णनों से प्रकट होता है।548 तूली या तूलिका से मूलतः कूची का अर्थ लेते थे। आधुनिक काल में तली या तूलिका की व्याख्या सळई540 से भी करते हैं जिससे उत्कीर्णन का कार्य करते हैं। सरकंडे या नरकट से बने लिखने के उपकरण को सभी पूरबी भाषाओं में कलम की कैलामस कहते हैं। इसका एक अपेक्षाकृत कम प्रचलित देशी नाम इषीका या ईषिका भी है जिसका शाब्दिक अर्थ सरकंडा या नरकट है।50 सरकंडे, नरकट, बांस, या लकड़ी के टुकड़ों को अंग्रेजी कलम की तरह बनाकर सारे भारत में स्याही से लिखते हैं ।551 ताड़पत्र और भोजपत्र 545. हेमाद्रि, दानखण्ड, प. 549 तथा आगे। 546. डी आलन्सि, इंट्रोडक्शन टु कच्चायन, XVII; जातक सं. 509 (IV, 489), इसकी ओर ओल्डेनवर्ग ने ध्यान आकर्षित किया है। 547. देखि. ब्यो. रो. व्यो. और ब्यो. व्यो. इसी शीर्षक के अंतर्गत । 548. वही, इसी शीर्षक के अंतर्गत ।। 549. अमरकोष, पृ. 246, श्लो. 33 पर महेश्वर की टीका बम्बई सरकार का संस्करण । 550. ब्यो. रो. व्यो., इसी शीर्षक के अंतर्गत । 551. मेरी जानकारी में भारत के सभी भागों में ऐसा ही होता है; मिला. राजेन्द्रलाल मित्र, गॉफ के पेपर्स, 18. 201 For Private and Personal Use Only
SR No.020122
Book TitleBharatiya Puralipi Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGeorge Buhler, Mangalnath Sinh
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1966
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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