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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १९६ भारतीय पुरालिपि - शास्त्र के प्राचीन स्तूप से मिला था। ब्रिटिश संग्रहालय में गिलट और चांदी की कलई किये ताड़पत्रों पर लिखी हस्तलिखित पुस्तकें हैं । मानी हुई बात है कि बहुमूल्य धातुओं का प्रयोग बहुत कम ही होता था । सबसे अधिक संख्या में ताम्रपट्ट ही मिले हैं। इससे यही सिद्ध होता है कि जब किसी प्रलेख को चिरस्थायी रखना होता था, विशेषकर भूदान-पत्र जो प्राप्ता के लिए स्वत्व - लेख का कार्य करता था, तो उसे ताम्रपट्टों पर ही खुदवाते थे । फाहियान ( लग. 400 ई.) के अनुसार बौद्ध - बिहारों में ताँबे पर खुदे दानपत्र थे । इनमें सबसे पुराना बुद्ध के समय का था। 518 यद्यपि फाहियान के इस कथन की पुष्टि होनी शेष है, पर सोहगौरा पट्ट (दे. पू. 65 ) बतलाते हैं कि मौर्य-काल में सरकारी आदेश ताँबे पर खोदे जाते थे । युवाङ च्वाङ के वर्णन में एक अन्य बौद्ध परंपरा भी सुरक्षित है 1" जो यह बतलाती है कि कनिष्क ने बुद्ध के बचन ताँबे के पत्रों पर खुदवाये थे । सायण के वेद भाष्यों के बारे में भी ऐसी ही एक कहानी प्रचलित है, जिसे बर्नेल अविश्वसनीय ठहराता है । 520 किंतु इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि साहित्यिक कृतियों को सुरक्षित रखने के लिए ताँबे का प्रयोग करते थे । त्रिपती में ऐसे पट्ट मिले हैं। बर्मा, और लंका के नमूने ( इनमें कुछ मुलम्में भी हैं ) ब्रिटिश संग्रहालय में सुरक्षित हैं । 521 काशगर से सेंट पीटर्सवर्ग को भेजे गये कुछ काफी आधुनिक ताम्रपट्टों के फोटोग्राफ एस. वान ओल्डेनवर्ग की कृपा से मुझे प्राप्त हुए हैं । इन पर गुरुमुखी और नागरी में सामानों सूचियाँ हैं । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जहाँ तक इनके निर्माण की प्रक्रिया का प्रश्न है सोहगौरा का सबसे पुराना ज्ञात ताम्प्रशासन (दे. ऊपर पृ. 65 ) रेत के एक सांचे में ढाला गया है । इस सांचे में ही पहले से अक्षर और प्रतीक चिह्न स्टाइलस या नुकीली लकड़ी से खरोंच दिये गये थे । इसीलिए अक्षर और प्रतीक उभरे हुए हैं । दूसरे सभी ताम्रपट्ट हथौड़ों से पीटकर बनाये गये हैं । कुछ पर तो हथौड़ों की चोटें भी दीखती हैं । इनकी मोटाई और चौड़ाई में भी काफी अंतर है । कुछ बहुत पतले हैं । इन्हें 518. सियुकि ( बील) 1, XXXVIII, 519. देखि ब, ए. सा. इं. पै. 86. 520. मै. मू. ऋग्वे. I, 17. 521. ज. पालि, टेक्स्ट सोसा. 1883, 136. 196 For Private and Personal Use Only
SR No.020122
Book TitleBharatiya Puralipi Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGeorge Buhler, Mangalnath Sinh
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1966
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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