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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मङ्गल-चिह्न १८५ अतिरिक्त दूसरे प्रतीक भी मिलते हैं जिनके नाम अभी तक अज्ञात हैं। एक बार तो स्वस्तिक का चिह्न सिद्धम् के बाद भी मिला है। 8७ । बाद में मङ्गल चिह्नों के रूपों में पर्याप्त परिवर्तन हो जाता है । कुछ प्रतीक तो वृहद् प्रकरणों के अंत में मिलते हैं और कुछ प्रलेख या ग्रंथ के अंत में । ऐसा ही एक सर्वाधिक प्रचलित चिह्न वह है जिसमें वृत्त और उसके भीतर एक उससे छोटा वृत्त या एक या एकाधिक बिदियाँ मिलती हैं ।467 यह धर्म-चक्र का प्रतीक हो सकता है जो फ्लीट के गु. इ. (का. इ. ई. III) सं. 63, फल. 39A पर स्पष्ट दीखता है। यह कमल का भी प्रतीक हो सकता है। यह प्रतीक भी अभिलेखों में मिलता है। यतः वृत्त के केन्द्र में बिंदी 0 से प्राचीन थ अक्षर बनता था, अतः इस प्रतीक के स्थान पर थ अक्षर से मिलते-जुलते चिह्न भी बाद में मिलते हैं ।468 आधुनिक हस्तलिखित ग्रंथों में छ अक्षर भी मिलता है जो मध्य-काल के थ के अनेक रूपों में एक है पर आज कल इसे छ पढ़ते हैं। पाँचवीं शती से हमें नये चिह्न भी मिलने लगते हैं। ये ओम् के प्राचीन ओ के अति अलंकृत रूप हैं। (फल. IV, 6, XVIII, फल. V, 47, IX) ओम् को महामङ्गल माना जाता है। ये चिह्न अभिलेखों के आदि और अंत में और कभी-कभी ताम्र-पट्टों के हाशियों पर भी मिलते हैं।469 466. नासिक सं. 6. 467. देखि. उदाहरणार्थ, बावर की प्रति, खंड 1, फल. 3, 5; खंड 2, फल. 1 तथा आगे; प्रतिकृतियाँ इं. ऐ. VI, 17; IX, 168, सं. 4; XVII, 310; XIX, 58 ; ए.इं. I, 10 पर हैं। सियाडोणी अभिलेख में विष्णु का कौस्तुभ बारंबार आया है, ए. ई. I, 173; मिला. ए. ई. II, 124. ____468. देखि. उदाहरणार्थ प्रतिकृतियों फ्ली. गु. इं. (का. इं. ई. II) सं. 71 (अंत में); इ. ए. VI, 67, फल. 2, पंक्ति 1 (इसे गलती से 20 पढ़ा गया है); इ. ऐ. VI, 192, फल. 29, पंक्ति 10; ए. ई. I, 77 (अंत में); III, 273, पंक्ति 39; III, 306. वेरावल प्रतिमा अभिलेख (अंत में) ____469. देखिए उदाहरणार्थ प्रतिकृतियाँ फ्ली. गु. इं. (का. इं. ई. III) सं. 11 फल. 6A (टिप्पणी 197 भी), 20, फल. 12 B, 26, फल. 16, आदि; इं. ऐ. VI, 32 (पांच बार), ए. ई. III, 52 (अंत में); बावर की प्रति खंड 1, फल. 1; मिला. बेरूनी, इंडिया; 173 (सचाऊ) । 185 For Private and Personal Use Only
SR No.020122
Book TitleBharatiya Puralipi Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGeorge Buhler, Mangalnath Sinh
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1966
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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