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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संख्यांक-लेखन 'डिमोटिक' प्रणाली के सिद्धांतों में सामान्य रूप से एकता है। फिर, 1 से 9 के डिमोटिक चिह्न तदनुरूप भारतीय चिह्नों से मिलते हैं। इन बातों से उन्होंने अनुमान लगाया है कि 'गुफा-संख्यांक' मिस्र से उधार लिये गये हैं। उनमें और रूपांतरण करके उन्हें अक्षर बना दिया गया है। अंत में, ई. सी बेली ने अपने लंबे निबंध में यह दिखलाने की कोशिश की है कि यद्यपि भारतीय प्रणाली के सिद्धांत मिस्र के गूढाक्षरी लेखन-प्रणाली से लिये गये हैं, पर भारतीय प्रतीकों का बहुलांश फोनेशियन, बैक्ट्रियन, अक्कादियन आकृतियों या अक्षरों से लिया गया है । कुछ ही प्रतीक ऐसे हैं जिनकी विदेशी उत्पत्ति नहीं दिखलायी जा सकती। बेली के स्पष्टीकरण में कई बड़ी कठिनाइयाँ हैं। उन्होंने माना है कि हिंदुओं ने चार-पाँच स्रोतों से इसे उधार लिया। इनमें कुछ तो अति प्राचीन स्रोत हैं और 'कुछ अधिक आधुनिक । पर अपने निबंध में उन्होंने भारतीय और मिस्री चिह्नों की जो तुलनात्मक तालिका दी है और सैकड़ों के लिखने में इनकी एकता पर जो टिप्पणी दी है उससे तो मेरा मन भगवानलाल इन्द्राजी के मत को छोड़कर कुछ संशोधनों के साथ बर्नेल के मत को अंगीकार करने को हो गया है। बर्नेल के मत से बार्थ भी सहमत हैं 1395 मुझे तो ऐसा लगता है कि ब्राह्मी के अंक मिस्र की गूढाकृतियों से निकले हैं। हिंदुओं ने इन्हें अक्षरों में बदल लिया क्यों कि पहले से ही वे संख्याओं को शब्दों से व्यक्त करने के अभ्यस्त थे। (मिला. आगे 35, अ)। इस व्युत्पत्ति के व्योरों में अभी कठिनाइयाँ हैं। अभी तक इन्हें निश्चय नहीं माना जा सकता है। मैंने इन्हें अपनी Indian Studies No. III के दूसरे संस्करण के परिशिष्ट II में दिया है। किंतु दो अन्य महत्वपूर्ण बातें निश्चित मानी जा सकती हैं (1) अशोक के आदेश-लेखों में इन संख्यांकों के विभिन्न रूप मिलते हैं जिनसे विदित होता है कि ई. पू. तीसरी शती में इनका इतिहास काफी पुराना था और (2) इन चिह्नों का विकास ब्राह्मण अध्यापकों ने किया क्योंकि वे उपध्मानीय के दो रूप प्रयोग में लाते हैं जो निःसंदेह शिक्षा के अध्यापकों की ईजाद हैं। __ आ. दाशमिक प्रणाली दाशमिक अंक-लेखन-प्रणाली को आज कभी-कभी अंकपल्लि कहते हैं। 395. ब; ए. सा. इं. पै. 65, टिप्पणी 1 । 169 For Private and Personal Use Only
SR No.020122
Book TitleBharatiya Puralipi Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGeorge Buhler, Mangalnath Sinh
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1966
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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