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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संख्यांक-लेखन 70 =पू (IV-VI; IX, XI,A), या प्रा (XII) एक घसीट क्रास के साथ (VII) और एक अन्य घसीट रूप (XI,B),दोनों शायद पू से निकले हैं। 80==विकर्णी डंडे के साथ उपध्मानीय और उपध्मानीय के घसीट रूप, हूबहू हस्तलिखित ग्रंथों जैसे। 90= बीच के क्रास के साथ उपध्मानीय, जैसा हस्तलिखित ग्रंथों में मिलता है । ___100=सु (I, 200 में; III; IX,A, B; X, XIII, 300 में; XIII, 400 में; XIV,400 में)जिसके लिए सातवीं-आठवीं शती के नेपाल के अभिलेखों में गलत पाठ के कारण अ ( XIII, A, B, XIV, 300 में) और छठी और बाद की शताब्दियों में पूरब के अभिलेखों में392 लु (X, 200 में, XVIII, 200 में) या पश्चिम393 और कलिंग के अभिलेखों में शु (संभवतः श और स के विभाषागत क्रमचय के कारण) मिलता है (IV; V; XI; XII, 400 में; XV A, B)। इस शु के स्थान पर उत्तरकालीन उत्तरी अभिलेखों में ओ भी मिलता है जो पाठ की गलती के कारण है। 200 और 300 को व्यक्त करने में 100 के लिए जो अक्षर बनता है उसके दायें क्रमशः एक और दो आड़ी लकीरें बनाते हैं। पर रूपनाथ में (I) स की खड़ी लकीर को और लंबा कर ये लकीरें लगाते हैं। जैसा कि हस्तखित ग्रंथों में होता है ऊ की एक स्पष्ट मात्रा स्तं. XVIII के केवल २०० में मिलती है। 400 = सु-कि (III), या सु-प्क (X; XIII; XIV) किंतु शु-क (XI) भी है। 500- शु त्र (IV), 600-शुक्र (XII), 700 =सु-न (III), मिलते हैं। 1000=रो (III), या चु (IV में संभाव्य, XV में स्पष्ट, 8000 में), या धु (IV, 2000 में; IV, 70000 में), 2000 और 3000 =धु जिसमें एक या दो आड़ी लकीरें हैं (IV) । 392• महानामन के अभिलेख में सबसे प्राचीन उदाहरण है, फ्ली. गु. इं. (का. इं. ई. III), सं. 71; 200, स्तं X में । 393. मिला, गुजरात के चालुक्यों के अभिलेख की तिथि से, सातवीं ओरियंटल कांग्रेस, पृ. 211; ज. बा. ब्रा. रा. ए. सो. XVI, 1 और ए. ई. III, 320, 1, 14 के वलभी रूप, जिसमें बाएं को इस काल का खंडित श प्रयोग में आया है; कोटा अभिलेख की तिथि, इं. ऐ. XIV, 351 जिसमें नवीं शती का श स्पष्ट है । उदयपुर के पश्चिमी अभिलेख में जिसकी खोज हाल ही में गौ. ही. ओक्षा ने की है शु, का रूप सू, या सा=300 मिलता है। 167 For Private and Personal Use Only
SR No.020122
Book TitleBharatiya Puralipi Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGeorge Buhler, Mangalnath Sinh
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1966
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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