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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संख्यांक-लेखन बे., भ., की. और पी.); या जानबूझ कर भेद करने से ले और ा (xxv; की.) से भी व्यक्त करते हैं। 40 =प्त और प्ता (XX, XXI, XXIII, XXIV, XXVI; बे., भ., की.) या जानबूझकर भेद करने से प्त, प्र्ता (XXV; की.) से भी व्यक्त करते हैं। 50 =अनुनासिक (? भगवानलाल), किंतु केवल स्त. XXIV का रूप इस अनुनासिक के सचमुच ज्ञात रूप के अनुरूप है (इ. ऐ. VI, 47); कभीकभी घुमाकर भी रखा जाता है (XX; बे., XXIII; की.)। 60=:चु जो नेपाली हस्तलिखित पुस्तकों में अक्सर मिलता है (XX, XXI, XXIII) या थु जो नागरी के हस्तलिखित ग्रंथों में नियमित रूप से मिलता है (XXV, XXVI; भ., की.) और जानबूझकर भेद करने को थु 88 (XXIV; की.) भी मिलता है। 70 = चू जो नेपाली हस्तलिखित ग्रंथों में अक्सर मिलता है (xx, XXI, XXIII; बे. भ.) या थू जो नागरी हस्तलिखित ग्रंथों में नियमित रूप से मिलता है (XXV, XXVI); जानबूझकर भेद करने को र्थ (XXIV; की.) भी मिलता है ।। _80==उपध्मानीय, जिसके मध्य में डंडा है (XXIII, XXVI, बे., भ. मिला. फल IV, 46, III) या उसके उत्तरकालीन संशोधित रूप (XXI, XXIV; भ., की.) जो हस्तलिखित ग्रंथों (की.) और अभिलेखों में भी मिलते हैं (फल. IV, 46, XXHI) । ____90=उपध्मानीय, जिसके मध्य क्रास की शक्ल के दो डंडे हैं (XXI, XXIII, XXVI; मिला. फल.VII, 46, V, VI); और इसके घसीट रूप (XXIV) या संभवतः जिह्वामूलीय (XXV; भ.) जो फल. VII, 46, III, XIII के म की भाँति के चिह्न से निकला है । ___100- नागरी हस्तलिखित ग्रंथों में सु (XXIV, XXV; भ., की.) या नेपाली हस्तलिखित ग्रंथों में आ जो सु के गलत निर्वचन का परिणाम है (xx, XXIII, बे., भ.) या नेपाली और बंगला हस्तलिखित ग्रंथों में लु जो एक-दूसरे गलत निर्वचन का परिणाम हैं। 200=नागरी हस्तलिखित ग्रंथों में सू (XXIV, Xxv; भ., की.) 388. पीटरसन का धुं गलत पाठ है। 163 For Private and Personal Use Only
SR No.020122
Book TitleBharatiya Puralipi Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGeorge Buhler, Mangalnath Sinh
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1966
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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