SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 157
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तेलुगू-कन्नड़ लिपि १३९ 1. ऋ--(फल. VII, 5, XVI) अति दुर्लभ है। मिला. इ, ऐ. 6, 23 के अंत की प्रतिकृति का प्राचीनतर अक्षर । यह फल. VI, 7, I, II के उत्तरी रूप का ही परिवर्तित रूप मालूम पड़ता है। 2. ख--(फल. VIII, 12, III-V) । अत्यंत घसीट रूप है । पुराने कन्नड़ ख और इसमें कोई फर्क नहीं । फ्लीट के मत से328 सन् 800 से पूर्व कभी नहीं मिला। किन्तु सगोत्री पल्लव अभिलेखों में (फल. VII, 9, XXIII, मिला. आगे 31, आ, 4) 7वीं शती से ही यह रूप मिलता है। _____3. च--ञ्च में (फल. VII, 41, XIX; फल. VIII, 19, III, IV) 9वीं शती से खुलने लगता है । ___4. द-9वीं शती से इसकी दुम ऊपर को उठने लगती है (फल. VIII, 27, II, IV, V )। 5. ब--ऊपर को खुला (फल. VIII, 32, V) यह रूप फ्लीट के मत से329 सबसे पहले लग. 850 ई. में मिलता है । 6. म-(फल. VII, 31, XVII; VIII, 34, HI-V) इसका ऊपरी भाग दाईं ओर को खिंच जाता है और उसी ऊँचाई पर आ जाता है जिस पर निचला भाग स्थित है। यह पुराने कन्नड़ म का आदि रूप हो जाता है। 7. ल--(फल. VII, 34,XVI) असामान्य घसीट रूप है। अन्यत्र ऐसा ल केवल संयुक्ताक्षरों में ही मिलता है (जैसे श्लो, फल. VII, 44 XVIII में ) । 8. मात्राएं कभी-कभी व्यंजन के नीचे लगती हैं (जैसे घे, फल. VIII, 28, V में )। 9. विराम चिह्न : अंतिम म् (फल. VIII, 41, XVII; फल. VIII, 46, V) और अंतिम न् (फल. VIII, 45, V) के ऊपर खड़ी पाई होता है। ____10. द्रविड़ ड (फल. VII, 45, XV, XVIII; 46, XXI; फल. VIII, 47, II, III) और ळ (फल. VII, 46, XV, XVIII; फल. VIII, 49, II, V ) सबसे पहले सातवीं शती में मिलते हैं। इनमें ड में संभवतः दो गोले र सम्मिलित हैं और ळ संभवतः फल. VII, 40, XIV, XVI का कोई 328. ए. ई. III, पृ. 162 तथा आगे। 329. ए. ई. III, 163 । 139 For Private and Personal Use Only
SR No.020122
Book TitleBharatiya Puralipi Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGeorge Buhler, Mangalnath Sinh
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1966
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy