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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मध्य भारतीय लिपि वाकाटकों के ताम्रपट्टों३0५, कोसल के तीवर राजाओं के ताम्रपट्टों10 और दो पुराने कदंब अभिलेखों11 में मिलता है । इन सभी प्रलेखों में अक्षरों के सिरों पर छूछे या भरे हुए वर्ग बनते हैं (फल. VII, स्त. XI, X)। ये वर्ग देखने में छोटे पिटकों यानी बक्सों जैसे लगते हैं । इसलिए इस लिपि को 'पिटक-शीर्ष' लिपि कहते हैं । ये कीलों की भाँति शोशों के ही कृत्रिम विकास हैं। भरे हुए वर्गों की ईजाद शायद रोशनाई का इस्तेमाल करने वाले लेखकों ने की। छूछे वर्गों का इस्तेमाल वे करते थे जो स्टाइलस से लिखते थे। इनको इस बात का डर रहता था कि कहीं ताड़पत्र फट न जाय । 'पिटक-शीर्ष' लिपि के दोनों विभेद यदाकदा या सदा अन्य जिलों और अन्य प्रसंगों में भी (जैसे फल. VII, स्त. V के वलभी अभिलेखों, फल. VII स्त. XII के पुराने कदंब अभिलेखों, फल. VII, स्त. XX के पल्लव अभिलेखों) मिलते हैं। यहां तक कि वृहत्तर भारत के चंपा के अभिलेख सं. 21 और 21 A में भी यह शैली है ।312 किन्तु मध्य भारतीय अभिलेखों के अति विलक्षण दीखने का कारण यह है कि इनमें अक्षरों की चौड़ाई संकुचित कर दी गई है और सारे भंग कोणीय लकीरों में परिवर्तित हो गये हैं। इस प्रकार अक्षरों का अल्पाधिक रूप परिवर्तन ही हो गया है। ए. इं. 3, 260 और फ्लीट के गुप्त इन्स्क्रिप्शंस (का 309. वही, सं. 53-56, फल. 33, A से 35; इं. ऐ. XII, 239; ब. आ. स. रि. वे. ई., IV, फल. 56 सं. 4, फल. 57, सं. 3; ए. ई. III, 260; मेरी राय में इनमें सबसे पुराना 5वीं शती का है जब कि फ्लीट के मत से 7वीं शती का । 310. फ्ली. गु. ई. (का. इं. ई. III) सं. 81. फल. 45. फ्लीट के मत से 8वीं या 9वीं शती से और कीलहान के मत से (देखि. ए. ई. IV, 258) निस्संदेह 8वीं शती से । 311. देखि. फ्लीट, इं. ऐ. XXI, 93; राइस ने मुझे कुब्ज की ताळगुड (स्थानकुंडूर) प्रशस्ति की एक छाप दी है। यह अभिलेख इसी प्रकार का है। इसका समय शान्ति वर्मन का राज्य काल है । देखि. ए. क. VII, संस्कृत 176. (और ए. ई. VIII)। 312. Bergaingne-Barth, Inscriptions Sanskrit du Campā et du Cambodge II, 23, चंपा के अभिलेखों में उत्तरी क और र मिलते हैं जिनके अंत में भंग नहीं होते ।। 133 For Private and Personal Use Only
SR No.020122
Book TitleBharatiya Puralipi Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGeorge Buhler, Mangalnath Sinh
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1966
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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