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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३० भारतीय पुरालिपि - शास्त्र दोनों अलंकरण रोशनाई से ही बन सकते हैं । रोशनाई के प्रयोग के संबंध में एक और भी तर्क है । गुजरात के सभी ताम्रपट्ट भूर्जपत्र के सामान्य आकार के ही बनाये गये हैं (बल) । इन पर स्टाइलस से लिखना संभव नहीं । बिना फंदे का राजपुताना और मध्यभारत की भूतपूर्व रियासतों 299 और वलभी में उत्तरी अक्षरों में लिखे लगभग या एकदम समकालीन अभिलेखों का मिलना और गुर्जर अभिलेखों 300 में नागरी में हस्ताक्षरों का होना यह सिद्ध करता है कि इस दक्षिणी लिपि के साथ-साथ उत्तरी लिपियों का भी इस्तेमाल होता था । इसी कारण निम्नलिखित अक्षरों में उत्तरी की छाप है : ( 1 ) ख, जिसमें एक लंबा-सा फंदा और नन्हा-सा हुक है । ( देखि फल. VII, 9, I-IX, VIII, 12, 1 ) शुद्ध दक्षिणी रूप तो बिरले ही मिलता है; 301 (2) च जो दाईं ओर को गोल हो गया है (फल. VII, 13, I-IX; VIII, 16, 1 ) ; ( 3 ) प्राचीन त ( फल. VII, 22, I—IX; VIII, 25, I ) ; ( 4 ) VII, 25, I–X; VIII, 28, 1; मिला. फल. IV, 25, I-III); ( 5 ) फंदेदार न (फल. VII, 26, I—X; VIII, 29, I ) जो फल. VII, 26, XIII के दक्षिणी रूप की अपेक्षा फल. IV, 26 के उत्तरी रूप के अधिक निकट है । ( मिला. आगे 29, अ ); (6) ए ( फल. VII, 26, V), ऐ ( फल. VII, 10, IV) और ओ ( फल VIII, 35, I ) की मात्राएं जो प्रायः पंक्ति के ऊपर लगती । लो (फल. VII, 34, III, IV) में ओ की फंदेदार मात्रा विचित्र है; (7) औ की मात्रा में पंक्ति के ऊपर तीन लकीर हैं (VII, 25, V; 36, III ), मिला. फल. IV, 7. IV ; ( 8 ) संयुक्ताक्षर में दूसरा यानी नीचे का तंग ध ( फल. जो कभी-कभी उत्तर को घसीट रूप में मिलता है, जैसे फल. VII, 42, VII I 17 और 62, में । फ्लीट के गुप्त इन्स्क्रिप्शंस (का. इ. इ. III ) के अभिलेख सं. फल. 10, 38, में अ और क के उत्तरी रूप हैं जिनमें नीचे भंग नहीं होता । फलक VII में इन अभिलेखों के अक्षर नहीं दिये गये हैं; इस प्रकार का क कभी-कभी वलभी के अभिलेखों में भी मिलता है ( फल. VII, 8, V)। इस लिपि में उत्तरी की ये विशिष्टताएं तो मिलती ही हैं और इनमें काल 299. मिला. फ्ली. गु. इं. (का. इं. इं. III ) सं. 6, 17, 61 फल. 4A, 10, 38A की प्रतिकृतियों से । 300. देखि ऊपर 21 का अंत | 301. उदाहरणार्थ मिला. लिखितम् से प्रतिकृति इं. ऐ. VII, 72 पर । 130 For Private and Personal Use Only
SR No.020122
Book TitleBharatiya Puralipi Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGeorge Buhler, Mangalnath Sinh
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1966
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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