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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १०४ भारतीय पुरालिपि- शास्त्र के सिरों पर कीलों के स्थान पर आड़ी रेखाएं बनाते हैं । ऐसे भी लेख मिलते हैं जिनमें कुछ अक्षरों में कीलशीर्ष हैं और कुछ में आड़ी शिरोरेखाएं । इसलिए कभीकभी तो अभिलेखों के सही वर्गीकरण में भी कठिनाई होने लगती है । इसी तीसरे और न्यूनकोणीय लिपि के अंतिम विभेद के अंतर्गत सन् 708-9 के मुल्ताई ताम्रपट्ट 226 ( फल. IV, स्त. XX ) ; संभवतः सन् 761 Satsang ( फल. IV, स्त. XXI ) 227, सन् 876 ई. का ग्वालियर अभिलेख (फल. V, स्त. II) और घोसरावा अभिलेख के भी ( फल V, स्त. V1) 228 अक्षर आते हैं जो नवीं या दसवीं शती के होंगे । हस्तलिखित ग्रंथों में कैंब्रिज की पांडुलिपि सं. 1049 ( फल. VI, स्त. V111 ) भी इसी वर्ग की है। इस पर संवत् 252 229 की तिथि है । यह संवत् संभवतः अंशुवर्मा संवत् है जो सन् 594 में चला | 230 इस प्रकार यह प्रति सन् 846 की हुई । न्यून कोणीय और नागरी लिपियों के बीच एक माध्यमिक स्थिति भी है जो लगभग सन् 900 ई. की पहोवा प्रशस्ति ( फल. V, स्त. III ), सन् 992 या 993 ई. की देवल प्रशस्ति ( फल. V, स्त. VIII ) और परमार राजा वाक्पतिराज द्वितीय के सन् 974 ई. के ताम्रपट्ट के अक्षरों में ( फल. V, स्त. X ) 231 में मिलती है । इनमें कीलें तो अवश्य मिलती हैं, पर ये इतनी चौड़ी हैं कि सीधी शिरोरेखाओंसी ही लगती हैं | अलावा, अ, आ, घ, प आदि के खुले सिर नागरी अभिलेखों की तरह बंद हैं। ऊपर ऐसे अभिलेखों की भी चर्चा आई है जिनमें कील शीर्ष और Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir XVII ए. इं. 225. इस विभेद और इससे पूर्व के विभेद के लिए मिला. इं. ऐ., II, 258; V, 180;IX, पृ, 174 तथा आगे, सं. 11, 13, 14, 15; X, 31; 310; XIX, 58; बेंडेल, जर्नी इन नेपाल, फल. 10, 11, 13; I, 179; क, आ, स. रि. XVII, फल. 9 की प्रतिकृतियों से और क., क्वा. मि. इं. फल. 3, सं. 7-14; फल. 6, सं. 20 और फलक 7 की आटोटाइपों से । 226. फ्लीट, इं. ऐ. XVIII, 231 के विचार से 'संक्रमणकालीन प्रकार जिससे थोड़े ही समय में उत्तर भारत की नागरी वर्णमाला निकली ' 227. फ्लीट, इ. ऐ. 228. मिला. इं. ऐ. XV, 106 के विचार से 'उत्तर भारत की नागरी । ' XVII, 308 229. बेंडेल, कै. कै. बु. म. ने., XLI; Anec. Oxon, Ar. Series. III, पृ. 71 तथा आगे । 230. सि. लेवी. ज. ए. 1894 II, पृ. 55 तथा आगे । 231. ए. ई. I, 76; इं. ऐ. VI, 48 104 For Private and Personal Use Only
SR No.020122
Book TitleBharatiya Puralipi Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGeorge Buhler, Mangalnath Sinh
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1966
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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