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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org उत्तरी लिपिय ९३ है । अंततोगत्वा आज भारत की लगभग सभी आर्यभाषाओं के लिए अनेक विभेदों में इसी का इस्तेमाल होता है । इनके बीज उन घसीट रूपों में मिलेंगे जो सबसे पहले अशोक के धौली के आदेशलेख VI, के अनुपूरक और उसके कालसी संस्करण के अनेक चिह्नों (दे. पृ. 21. H) में मिलते हैं । बाद में कुषान काल के जैनों के कतिपय दान-लेखों में भी कभी-कभी या हमेशा ये मिलते हैं (दे. 19 अ ) । इनका सामान्य प्रकार घसीट लिपि वाला है । अक्षर के ऊपर लगने वाले निशान उसी ऊँचाई तक के होते हैं और जहाँ तक संभव हो बराबर चौड़ाई के बनाये जाते हैं । प्राचीन हस्तलिखित ग्रंथों का पाया जाना और अक्षरों की अनेक विशिष्टताएं जैसे; शोशों से पच्चड़ जैसा बना देना सिद्ध करता है कि इनमें लिखने के लिए रोशनाई का इस्तेमाल होता था और कलम या कूंची से लिखते थे । इनकी सबसे महत्त्वपूर्ण सामान्य विशेषताएं हैं: (1) अ, आ, क, आदि में खड़ी रेखा के निचले किनारों पर भंगों का अभाव (र में कभी-कभी इसका अपवाद मिलता है); ( 2 ) ख, ग, और श में नीचे को जाती बाईं लकीर में शोशे का इस्तेमाल; (3) ण की मूल खड़ी लकीर और इसके ऊपरी डंडे का विभाजन; (4) फंदेदार न और बिना फंदे के त का इस्तेमाल; ( 5 ) म के निचले हिस्से में अक्षर की बाईं ओर एक गाँठ या फंदे का जुड़ना; ( 6 ) ल की खड़ी लकीर का छोटा होना; (7) इ की मात्रा का बाईं ओर मुड़ने लगना और शीघ्र ही ई की मात्रा का दाईं ओर को मुड़ना; ( 8 ) शुरू की आड़ी Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्त XI : बेंडेल, वही, फल. 3, 1 स्त XII : बलिन ओरियंटल कांग्रेस, इंडियन सेक्शन फल. 2, 2. 3 स्त. XIII : बेंडेल, वही, फल. I, 3 स्त. XIV : Anecd. Oxon. Ar, Series I, 1. फल. 4 से स्त. XV, XVI, XVII. ल्युमन, फोटोग्राफ आफ डेक्कन कालेज कलेक्शन, 1880-81, सं. 57; 7, XV, XVI; 14 और 16, XV; 19 और 23, XV; XVI; 24, XV; 27, XV, XVI; 35, 37, 41 XVII, ल्युमन के विशेषावश्यक, फल. 35; 7, XVII और 8, 9, 10, XV और 12, 14, 16, XVI से पूरा किया और रायल एशियाटिक सोसायटी के गणरत्न महोदधि के फोटोग्राफ से भी लिया । 1 स्त. XVIII, XIX : वियना ओरियंटल कांग्रेस, आर्यन सेक्शन पृ. 111 तथा आगे के फलकों से । 93 For Private and Personal Use Only
SR No.020122
Book TitleBharatiya Puralipi Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGeorge Buhler, Mangalnath Sinh
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1966
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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