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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतीय पुरालिपि-शास्त्र में जो ऊपर उठ जाती है, पर रा, 32, I में यह अपने पुराने रूप में ही है), इ की मात्रा (दि, 23, 1), ओ की मात्रा ( घो, 10, I और शो 35, II ) और पंक्ति के ऊपर अनुस्वार का स्थान (णं, 20, I) आदि इसके उदाहरण हैं । क के पुराने रूप (7, I, II) के अतिरिक्त क्ष (40, I) में बाद की तरह का झुके डंडों वाला रूप भी मिलता है, व का एक असामान्य दो त्रिभुजों वाला रूप भी है (34, II)। ऐसा रूप कुषान अभिलेखों में और अन्यत्र भी मिलता है ।1 इसमें ऊपरी हिस्सा शायद एक खोखला पच्चर है। इस वर्ग के अभिलेखों में पहली बार ऋ की मात्रा के भी दर्शन होते हैं । 172 वृ (34, III) में यह मात्रा लगी है। यह मात्रा बायें को झुकी एक तिरछी लकीर के रूप में है और ठीक वैसी ही है जैसी कि कुषान अभिलेखों में मिलती है। आ. कूषान अभिलेखों की लिपि : फलक. III उत्तरी भारत में ब्राह्मी के विकास का अगला चरण उन अभिलेखों में मिलता है जो कुषान राजा कनिष्क, हुविष्क, और वासुष्क या वासुदेव के समय से शुरू होते हैं (फल. III, III-V) । इनमें कनिष्क ने पूर्वी और दक्षिणी पंजाब में शक शासन का अंत किया था। जिन अभिलेखों में इन राजाओं के नाम आये हैं उनकी तिथि 4 से 89 है (सामान्य मत यह है कि यह तिथि शक संवत् में है। जिसका प्रारंभ 77-78 ई. में हुआ था या सेल्यूकस काल की चौथी शती है) 173 । मथुरा और उसके आसपास में ऐसे बहुत-से अभिलेख मिलते हैं। पूर्वी राजस्थान और मध्यप्रदेश (सांची) में भी ऐसे अभिलेख मिले हैं जिन पर इन राजाओं के नाम हैं । 174 इस लिपि के पृथक्-पृथक् अक्षरों में काफी विचित्रताएं मिलती हैं। इसके पुराने अभिलेखों में प्रायः अपेक्षाकृत आधुनिक रूप ___171. ए. ई. II, 201, सं. 12; 207, सं. 32; खोखली पच्चियाँ आ.स. रि. II, फलक; 23, सं. 1; फ्ली. गु.ई. (का. इ.इं. III) सं. 23 में भी मिलती हैं। 172. वृष्णीणाम् में, क., आ. स. रि. XX, फल. 5, पंक्ति 2. _173. इं. ऐ. X, 213; क., क्वा. इं. सी. 51, 57; भंडारकर : अर्ली हिस्ट्री आफ डेक्कन II, 26, पा. टि. 1 का विचार है कि कनिष्क ने इसके बाद राज्य किया था; किन्तु सि. लेवी, ज. ए. 1897, 1, 5 तो वासुदेव को भी ईसा की पहली शती में रखते हैं। इसके संवत् 4, और 5 की तिथियाँ ए. ई. II, 201, सं. 11, 12; में और संवत् 7 की तिथि ए. ई. I, 391, सं. 19 में भी हैं । 174. देखि. प्रतिकृति ए. ई. II, 369 82 For Private and Personal Use Only
SR No.020122
Book TitleBharatiya Puralipi Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGeorge Buhler, Mangalnath Sinh
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1966
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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