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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हैहय-वंश। मोने चाँदी और ताँबेके सिक्के मिलते हैं, जिनकी एक तरफ, बैठी हुई चतुर्भुनी लक्ष्मीकी मूर्ति बनी है और दूसरी तरफ, ‘श्रीमद्गांगेयदेवः' लिखा है। ___ इस राजाके पीछे, कन्नौजके राठोड़ोंने, महोबाके चंदेलने, शाहबुद्दीनगोरीने और कुमारपाल अजयदेव आदि राजाओंने जो सिक्के चलाए, वे बहुधा इसी शैलीके हैं। ___ गांगेयदेवने विक्रमादित्य नाम धारण किया था । कलचुरियों के लेखोंमें इसकी वीरताकी जो बहुत कुछ प्रशंसा की है वह, हमारे ख्याल में यथार्थ ही होगी; क्योंकि, महोबासे मिले हुए, चंदेलके लेखमें इसको, समस्त जगतका जीतनेवाला लिखा है, तथा उसी लेखमें चंदेल राजा विजयपालको, गांगेयदेवका गर्व मिटानेवाला लिखा है। इससे प्रकट होता है कि विजयपाल और गांगेयदेवके बीच युद्ध हुआ था। इसने प्रयागके प्रसिद्ध बटके नीचे, रहना पसन्द किया था; वहीं पर इसका देहान्त हुआ। एक सौ रानियाँ इसके पीछे सती हुई। अलबेरूनी, ई० स० १०३० (वि० सं० १०८७ ) में गांगयको, डाहल ( चेदी ) का राजा लिखता है । उसके समयका एक लेख कलचुरी सं०७८९ (वि० सं० १०९४) का मिला है । और उसके पुत्र कर्णदेवका एक ताम्रपत्र कलचुरी सं० ७९३ ( वि० सं० १०९९ ) का मिला है; जिसमें लिखा है कि कर्णदेवने, वेणी ( वेनगंगा ) नदीमें स्नान कर, फाल्गुनकृष्ण २ के दिन अपने पिता श्रीमद्गांगेयदेवके संवत्सरश्राद्धपर, पण्डित विश्वरूपको सूसी गाँव दिया । अतएव गांगेयदेवका देहान्त वि० सं० १०९४ और १०९९ के बीच किसी वर्ष फाल्गुनकृष्ण २ का होना चाहिये और १०९९ फाल्गुनकृष्ण २ के दिन, उसका देहान्त हुए, कमसे कम एक वर्ष हो चुका था । (१) Ep. Ind. Vol. II. P. 3. (२) Ep. Ind. Vol. II. P.4. For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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