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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हैहय वंश | . चौलुक्य विनयादित्यने दूसरे कई राजवंशियों के साथ साथ है - योंको भी अपने अधीन किया था । और चौलुक्य विक्रमादित्यने ( वि० सं० ७५३ सं० ७९० ) हैहयवंशी राजाकी दो बहिनों से विवाह किया था; जिनमें बड़ीका नाम लोकमहादेवी और छोटीका त्रैलोक्यमहादेवी था जिससे कीर्तिवर्मा ( दूसरे ) ने जन्म लियाँ । उपर्युक्त प्रमाणोंसे सिद्ध होता है कि वि० सं० ५५० से ७९० के बीच, हैहयोंका राज्य, चौलुक्य राज्यके उत्तर में, अर्थात् चेदी और गुजरात ( लाट ) में था; परन्तु उस समयका शृंखलाबद्ध इतिहास नहीं मिलता । केवल तीन नाम कृष्णराज, शङ्करगण और बुद्धराज मिलते हैं; जिनमें से अन्तिम राजा, चौलुक्य मंगलीशका समकालीन था इस लिये उसका वि० सं० ६४८ से ६६६ के बीच विद्यमान होना स्थिर होता है । यद्यपि हैहयोंके राज्यका वि० सं० ५५० के पूर्वका कुछ पता नहीं चलता; परन्तु, ३०६ में उनका स्वतन्त्र सम्वत् चलाना सिद्ध करता है कि, उस समय उनका राज्य अवश्य विशेष उन्नति पर था । १ - कोकलदेव | हैहयों के लेखोंमें को कल्लदेवसे वंशावली मिलती है । बनारस के दौन - पत्र में उसको शास्त्रवेत्ता, धर्मात्मा, परोपकारी, दानी, योगाभ्यासी, तथा भोज, वल्लभराज, चित्रकूटके राजा श्रीहर्ष और शङ्करगणका निर्भय करनेवाला लिखा है । और बिल्हारीके शिलालेख में लिखा है कि, उसने सारी पृथ्वीको जीत, दो कीर्तिस्तम्भ खड़े किये थे- दक्षिण में कृष्णराज और उत्तर में भोजदेव | इस लेखसे प्रतीत होता है कि उपरोक्त दोनों राजा, कोकल्लदेव के समकालीन थे; जिनकी, शायद उसने ( १ ) Ind. Aat. vol. VI P. 92 ( २ ) EH, Ind. vol. III, P. 5. (3) EP. Ind. vol. II P. 305. (y) EP. Ind. vol. I P. 326. ३९ For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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