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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतके प्राचीन राजवंश विश्वसिंह। [ शक-सं० १९९-२०४(ई० स० २७७-२७ x =वि०सं० ३३४-३३ x)] यह रुद्रसेन द्वितीयका पुत्र था । यह शक-संवत् १९९ और २०० में क्षत्रप था और शक-सं० २०१ में शायद महाक्षत्रप हो गया था। उस समय इसका भाई भर्तृदामा क्षत्रप था, जो शक-सं० २११ में महाक्षत्रप हुआ। इसके सिक्कोंपरके संवत् साफ नहीं पढ़े जाते हैं। इसके क्षत्रप उपाधिवाले सिक्कों पर उलटी तरफ “ राज्ञो महाक्षत्रपस रुद्रसेनपुत्रस राज्ञोः क्षत्रपस वीश्वसीहस” और महाक्षत्रप उपाधिवालों पर “राज्ञो महाक्षत्रपस रुद्रसेनपुत्रस राज्ञो महाक्षत्रपस वीश्वसीहस" लिखा होता है । तथा सीधी तरफ औरॉकी तरह ही संवत् आदि होते हैं। भतॄदामा। [श० सं० २०१--२१७ (ई० स० २७९-२९५ -वि० सं० ३३६-३५२)] यह रुद्रसेन द्वितीयका पुत्र था और अपने भाई विश्वसिंहका उत्तराधिकारी हुआ। श० सं० २०१ में यह क्षत्रप हुआ और कमसे कम श० सं० २०४ तक अवश्य इसी पद पर रहा था । तथा श० सं० २११ में महाक्षत्रप हो चुका था। उक्त संवतोंके बीचके साफ संवत्वाले सिक्कोंके न मिलनेके कारण इस बातका पूरा पूरा पता लगाना कठिन है कि उक्त संवतोंके बीचमें कब तक यह क्षत्रप रहा और कब महाक्षत्रप हुआ। इसने श०सं० २१७ तक राज्य किया था ___ इसके क्षत्रप उपाधिवाले सिक्कों पर उलटी तरफ “ राज्ञो महाक्षत्रपस रुद्रसेनपुत्रस राज्ञः क्षत्रपस भर्तृदानः" और महाक्षत्रप उपाधिवालोंपर " राज्ञो महाक्षत्रपस रुद्रसेनपुत्रस राज्ञो महाक्षत्रपस भर्तृदाम्नः" लिखा मिलता है। (१) यह अङ्क साफ नहीं पढ़ा जाता है। For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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