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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतके प्राचीन राजवंश दामजदश्री (द्वितीय)। [ श० सं० १५४, १५५ ( ई. स. २३२, २३३=वि० सं० २८९, २९० )। यह रुद्रसेन प्रथमका पुत्र था। इसके सिक्कोंसे पता चलता है कि यह अपने चचा महाक्षत्रप दामसेनके समय श० सं० १५४ और १५५ में क्षत्रप था । इसके क्षत्रप उपाधिवाले चाँदीके सिक्के मिले हैं । इन पर एक तरफ़ " राज्ञो महाक्षत्रपस रुद्रसेनपुत्रस राज्ञः क्षत्रपस दामजदश्रियः " और दूसरी तरफ़ श० सं० १५४ या १५५ लिखा होता है ।। ये सिक्के भी दो प्रकारके होते हैं । एक प्रकारके सिक्कों पर चन्द्रमा और तारामण्डल क्रमशः चैत्यके बाएँ और दाएँ होते हैं और दूसरी तरहके सिक्कों पर क्रमशः दाएँ और बाएँ । वीरदामा । [ श० सं० १५६-१६० ( ई० स० २३४-२३८-वि० सं०२९१-२९५)] यह दामसेनका पुत्र था । इसके क्षत्रप उपाधिवाले चाँदीके सिक्के मिले हैं। इन पर उलटी तरफ “ राज्ञो महाक्षत्रपस दामसेनस पुत्रस राज्ञः क्षत्रपस वीरदाम्नः " और सीधी तरफ श० सं० १५६ से १६० तकका कोई एक संवत् लिखा रहता है। इसके पुत्रका नाम रुद्रसेन (द्वितीय ) था। ईश्वरदत्त । [श० सं० १५८ से १६१ ( ई० स० २३६ से २३९= वि० सं० २९३ से २९६) के मध्य ।] इसके नामसे और इसके सिक्कमें दिये हुए राज्य-वर्षोंसे अनुमान होता है कि यह पूर्वोल्लिखित चष्टनके वंशजों से नहीं था । इसका नाम For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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