SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 69
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतके प्राचीन राजवंश है । यद्यपि उक्त संवत् स्पष्ट तौरसे लिखा पढ़ा नहीं जाता तथापि इसके चचा रुद्रसिंह प्रथमके सिक्कोंपर विचार करनेसे इसका कुछ कुछ निर्णय हो सकता है । रुद्रसिंह पहली बार श० सं० १०३ से ११० तक और दूसरी बार ११३ से ११८ या ११९ तक महाक्षत्रप रहा था । इससे अनुमान होता है कि या तो जीवदामाके इन सिक्कों पर श० सं०१०० से १०३ तकके या ११० से ११३ तकके बीचके संवत् होंगे। क्योंकि एक समयमें दो महाक्षत्रप नहीं होते थे। इन सिक्कोंके लेख आदिक बहुत कुछ इसके पिताके सिक्कोंके लेखादिसे मिलते हुए हैं। इसके दूसरी प्रकारके सिक्कों पर एक तरफ़ “ राज्ञो महाक्षत्रपस दामजदस पुत्रस राज्ञो महाक्षपस जीवदामस" और दूसरी तरफ़ श. सं० ११९ और १२० लिखा रहता है। ये सिक्के इसके चचा रुद्रसिंह प्रथमके सिक्कोंसे बहुत कुछ मिलते हुए हैं। जीवदामाके मिश्रधातुके सिक्कों पर उसके पिताका नाम नहीं होता । केवल एक तरफ़ “राज्ञोमहाक्षत्रपस जीवदामस" लिखा होता है और दूसरी तरफ़ शक-संवत् लिखा रहता है जिसमेंसे अब तक केवल श० सं० ११९ ही पढ़ा गया है। __आज तक ऐसा एक भी स्पष्ट प्रमाण नहीं मिला है जिससे यह पता चले कि रुद्रसिंहके महाक्षत्रप रहनेके समय जीवदामाकी उपाधि क्या थी। रुद्रसिंह प्रथम । [श० सं० १०२- ११८, ११९ १ (ई० स० १८०-१९६, १९७ ?=वि. सं० २३७-२५३,२५४१)] यह रुद्रदामा प्रथमका पुत्र और दामजदका छोटा भाई था। इसके चाँदी और मिश्रधातुके सिक्के मिलते हैं । इससे पता चलता है कि यह श० सं० १०२~१०३ तक क्षत्रप और श० सं० १०३ से ११० तक २० For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy