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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org क्षत्रप-वंश | नहपान के चाँदी के सिक्कों में एक तरफ राजाका मस्तक और ग्रीक अक्षरोंका लेख तथा दूसरी तरफ अधोमुख बाण, वज्र और ब्राह्मी तथा खरोष्ठी लिपिमें लेख रहता है । परन्तु इसके ताँबे के सिक्कों पर मस्तक के स्थान में वृक्ष बना होता है । इसी नहपान के चाँदी के इसके ऊपर वर्णित चाँदी के आन्ध्रवंशी राजा गौतमीपुत्र ऐसे सिक्कों पर पूर्वोक्त Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुछ सिक्के ऐसे भी मिले हैं, जो असल में सिक्कोंके समान ही होते हैं परन्तु उन पर श्रीसातकर्णीकी मुहरें भी लगी होती हैं । चिह्नों या लेखों के सिवा एक तरफ तीन चश्मों ( अर्धवृत्तों ) का चैत्य बना होता है जिसके नीचे एक सर्पाकार रेखा होती है और ब्राह्मी लिपिमें " रात्री गोतम पुतस सिरि सातकविस" बलिया रहता है तथा दूसरी तरफ उज्जयिनीका चिह्न विशेष बना रहता | wwwww चष्टन और उसके उत्तराधिकारियोंके चाँदी, ताँबे, सीसे आदि धातुओंके सिक्के मिलते हैं। इनमें चाँदी के सिके ही बहुतायत से पाये जाते हैं । अन्य धातुओं के सिक्के अब तक बहुत ही कम मिले हैं । तथा उन परके लेख भी बहुधा संशयात्मक ही होते हैं । उन पर हाथी, घोड़ा, बैल अथवा चैत्यकी तसबीर बनी होती है और ब्राह्मी लिपिमें लेख लिखा रहता है । सीसे के सिक्के केवल स्वामी रुद्रसेन तृतीय ( स्वामी रुद्रदामा द्वितीय के पुत्र ) के ही मिले हैं । क्षत्रपोंके चाँदी के सिक्के गोल होते हैं। इनको प्राचीनकालमें कार्षापण कहते थे । इनकी तोल ३४ से ३६ ग्रेन अर्थात् करीब १४ रत्तीके होती है । नासिक से जो उषवदातका श० सं० ४२ वैशाखका लेख मिला है' उसमें ७०००० कार्षापणोंको २००० सुवर्णोंके बराबर लिखा ( १ ) PEp. Ind., Vol, VIII. 82, For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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