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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क्षत्रप-वंश । हैं। पूर्वोक्त खरोष्ठी लिपि, फ़ारसी अक्षरोंकी तरह, दाई तरफ़से बॉई. तरफ़को लिखी जाती थी। इनके समयके अङ्कोंमें यह विलक्षणता है कि उनमें इकाई, दहाई आदिका हिसाब नहीं है। जिस प्रकार १ से ९ तक एक एक अङ्कका बोधक अलग अलग चिह्न है, उसी प्रकार १० से १०० तकका बोधक भी अलग अलग एक ही एक चिह्न है । तथा सौके अङ्कमें ही एक दो आदिका चिह्न और लगादेनेसे २००, ३०० आदिके बोधक अङ्क हो जाते हैं । उदाहरणार्थ, यदि आपको १५५ लिखना हो तो पहले सौका अङ्क लिखा जायगा, उसके बाद पचासका और अन्तमें पाँचका। यथा१००+५०+५=१५५ आगे क्षत्रोंके समयके ब्राह्मी अक्षरों और अङ्कोंकी पहचानके लिए उनके नकशे दिये जाते हैं; उनमें प्रत्येक अक्षर और अङ्कके सामने आधुनिक नागरी अक्षर लिखा है । आशा है, इससे संस्कृत और हिन्दीके विद्वान भी उस समयके लेखों, ताम्रपत्रों और सिक्कोंको पढ़ने में समर्थ होंगे। इसीके आगे खरोष्ठी अक्षरोंका भी नकशा लगा दिया गया है, जिससे उन अक्षरोंके पढ़ने में भी सहायता मिलेगी। लेख । अबतक इनके केवल १२ लेख मिले हैं। ये निम्नलिखित पुरुषोंके हैं उषवदात-(ऋषभदत्त)-यह नहपानका जामाता था। इसके ४ लेख मिले हैं। इनमेंसे दोमें तो संवत् है ही नहीं और तीसरेमें टूट गया है । केवल चैत्र शुक्ला पूर्णिमा पढ़ा जाता है । तथा चौथे लेखमें शक-संवत् ४१, ४२ और ४५ लिखे हैं । परन्तु यह लेख श० सं०. ४२ के वैशाखमासका है। Ep. Ind., Vol. VIII, p. 78, (१) E Ind., Vol. VII, p. 57, (२) Ep. Ind., Vol. VIII, p. 85, (३) Ep. Ind., Vol. VIII, p. 83, For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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