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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जालोरके सोनगरा चौहान । - यह घटना हिजरी सन् ६०७ ( वि० सं० १२६८ ई० स० १२११ के निकट हुई थी। __उपर्युक्त लेखोंसे भी उदयसिंहके और मुसलमानोंके बीच युद्धका होना प्रकट होता है। परन्तु मूता नैणसीने अपने इतिहासमें लिखा है कि यद्यपि सुलतानने उदयसिंह पर चढ़ाई की तथापि उसे वापिस लौटना पड़ा । सूंधा पहाड़ीके लेखमें भी इसे तुरुष्काधिपके मदको तोड़नेवाला लिखा है । अतः फारसी तवारीखोंमें जो सुलतान द्वारा जालोर-विजयका वृत्तान्त लिखा गया है वह बहुत कुछ कपोलकल्पित ही प्रतीत होता है और अगर वास्तवमें सुलतानने उदयसिंहको अपने अधीन किया होगा तो भी केवल नाममात्र के लिए ही। इसका एक यह भी सबूत है कि यदि सुलतानने पूर्ण विजय प्राप्त की होती तो फारसी तवारीखोंमें वहाँके मन्दिरों आदिके नष्ट करनेका उल्लेख भी अवश्य ही होता । ___ उपर्युक्त संधाके लेखमें इसे गुजरातके राजाओंसे अजेय लिखा है। निम्नलिखित घटनाओंसे इस बातकी पुष्टि होती है: कीर्तिकौमुदीमें लिखा है कि-" जिस समय दक्षिणसे यादवराजा सिंहणने लवणप्रसादपर चढ़ाई की, उस समय मारवाड़के भी चार राजा ओने मिल उसपर हमला किया। परन्तु बघेल राजाने उन्हें वापिस लौटनेको बाध्य किया।" ___ हम्मीर-मदमर्दन काव्यमें लिखा है कि-"जिस समय लवणप्रसादके पुत्र वीरधवलपर एक तरफसे सिंघणने, दूसरी तरफसे मुसलमानोंने और तीसरी तरफसे मालवेके राजा देवपालने चढ़ाई की, उस समय सोमसिंह, उदयसिंह और धारावर्ष नामके मारवाड़के राजा भी मुसलमान सेनाकी सहायतार्थ तैयार हुए; परन्तु वीरधवलने चढ़ाई कर उन्हें अपनी ३० ३०५ For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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