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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतके प्राचीन राजवंश . संधाके लेखमें इसका नाम आशाराज लिखा है। उसमें यह भी लिखा है कि मालबमें इसके खडद्वारा की गई सहायतासे प्रसन्न होकर सिद्ध राज (गुजरातके चौलुक्य जयसिंह ) ने इसके लिये सोनेका कलर रक्खा था। उपर्युक्त घटना मालवेक परमार राजा नरवर्मा या उसके पुत्र यशो. बांके समय हुई होगी। क्योंकि अणहिलवाड़ेके चालुक्य सिद्धराजके और इनके बीच कई वर्षोंतक युद्ध होता रहा था ! सम्भव है, उसीमें अश्वराजने भी अपना पराकम प्रकाशित किया हो। इसके समयके तीन लेख मिले हैं: पहला वि० सं० ११६७ ( ई० स० १११० ) चैत्र शुक्ला १ का है। इसमें इसके युवराजका नाम कटुकराज लिखा है। दृसरा वि० सं० ११७२ ( ई० स० १११५ ) का है। इसमें लिखा है:---- तत्त न] जस्ततो जातः प्रतापाक्रान्तभूतलः । अश्वराजः श्रियाधारों [ भूप ] तिर्भूभृतां वरः ॥ ४ ॥ ततः कटुकराजेति तत्पुत्रो धरणीतले।। जज्ञे सत्यागसौभाग्यविख्यातः पुण्यविस्मितः ॥ ५ ॥ तद्भक्तौ पत्तनं र [म्यं शमीपाटीति नाम [ के। तत्रास्ति वीरनाथस्य चैत्यं स्वर्गसमोपमं ॥६॥ अर्थात् राजा अश्वराजका पुत्र कटुकराज हुआ । उसकी जागीरके सेवडी नामक गाँवमें वीरनाथका मन्दिर है। उक्त लेखसे प्रकट होता है कि उस समय तक भी अश्वराज ही राजा था और उसने अपने पुत्र कटुकराजके खर्चके लिये उसे कुछ जागीर दे रक्खी थी। ___ तीसरा वि० सं० १२०० ( ई० स० ११४३ ) का है । इसमें लिखा है: For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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