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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतके प्राचीन राजवंश "दिल्लीश्वर अलाउद्दीनने अपने भाई उलगखांसे कहा कि रणथंभोरका राजा नैत्रसिंह तो मुझको कर दिया करता था, परन्तु उसका पुत्र हम्मीर नहीं देता है । यद्यपि वह बड़ा वीर है और उसका जीतना कठिन है, तथापि इस समय वह यज्ञकार्यमें लगा हुआ है, अतः यह मौका ठीक है। तुम जाकर उसके देशको विध्वंस करो । यह सुन उलगखां ८०००० सवार लेकर रवाना हुआ और वर्णनासा नदीके तीरपर पड़ाव डाल आसपासके गाँवोंको जलाने लगा। इसपर हम्मीरके सेनापति भीमसिंह और धर्मसिंहने जाकर उसे परास्त किया । जब युद्धमें विजय प्राप्त कर भीमसिंह रणथंभोरकी तरफ चला और सैनिक वीर युद्धमें प्राप्त हुआ लूटका माल अपने अपने घर पहुँचाने चले गये तब मौका देख बची हुई फौजसे उलगखाने भीमसिंहका पीछा किया और उसे मार डाला । इस समय धर्मसिंह पीछे रह गया था। इस बातसे अप्रसन्न हो हम्मीरने उस (धर्मसिंह ) की आँखें निकलवा दी और उसके स्थानपर अपने भाई भोजको नियत कर दिया । कुछ समय बाद राजाकी अश्वशालाके घोड़ोंमें बीमारी फैल गई और बहुतसे घोड़े मर गये । इसपर राजाको बड़ी चिन्ता हुई । जब यह वृत्तान्त धर्मसिंहको मालूम हुआ तब उसने हम्मीरसे कहलाया कि यदि मुझे फिर मेरे पूर्व पदपर नियत कर दिया जाय तो जितने घोड़े मरे हैं उनसे दुगने घोड़े मैं आपकी भेट कर दूंगा । यह सुन हम्मीर लालचमें आगया और उसने धर्मसिंहको पीछा अपने पहले स्थानपर नियत कर दिया। धर्मसिंहने भी प्रजाको लूटकर राज्यका खजाना भर दिया । इससे राजा उससे प्रसन्न रहने लगा । एकदिन धर्मसिंहका पक्ष लेकर हम्मीरने अपने भाई भोजका निरादर किया। इसपर वह काशीयात्राका बहाना कर अपने छोटे भाई पीथसिंहको ले दिल्लीके बादशाह अल्लाउद्दीनके पास चला गया । बादशाहने इसका बड़ा आदर सत्कार कर इसे जागीर दी। २७० For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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