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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतके प्राचीन राजवंश ई० सं० १२३७) में इसने मुसलमानोंसे रणथंभोरका किला छीना और हि० स० ६५१ ( ई० सं० १३१० ई० स० १२५३ ) में वह दूसरी बार उलगखांसे लड़ा । इसीसे इसका १७ वर्ष राज्य करना सिद्ध होता है और सम्भव है कि इसके बाद भी कुछ समय तक यह जीवित रहा हो । हम पहले लिख चुके हैं कि इसके समय नरवरपर प्रतापी राजा चाहड़देवका अधिकार था । यह राजा बड़ा वीर था और इसके पास भी बहुत बड़ी सेना थी । इसने उलगखांको भी हराया था । तबकाते नासिरीकी पुस्तकों में लेख - दोषसे कई स्थानोंपर इसके नामकी जगह ' बाहर ' नाम भी पढ़ा जाता है । इसीके आधारपर एडवर्ड टौमस साहबने उपर्युक्त बाहड़ ( वाग्भट ) देवका और नरवर के चाहड़देवका एक ही होना अनुमान कर लिया हैं और जनरल कनिंगहामने भी इसमें अपनी अनुमति जताई है । परन्तु नरवरके लेखों में उक्त चाहड़देवका नाम स्पष्ट लिखा मिलने से उक्त अनुमान ठीक प्रतीत नहीं होता | नरवर के चाहड़देवका पुत्र आसलदेव था जो उसका उत्तराधिकारी हुआ और इस ( रणथंभोर के ) बाहड ( वाग्भट ) का पुत्र और उत्तराधिकारी जैत्रसिंह था । ६ - जैत्रसिंह | यह वाग्भट ( बाहड़ ) देवका पुत्र और उत्तराधिकारी था । इसकी रानीका नाम हीरादेवी था । इसीसे हम्मीरका जन्म हुआ था । हम्मीरमहाकाव्य में लिखा है कि यह वि० सं० १३३९ ( ई० स० १२८२ ) के माघ शुक्लपक्षमें अपने पुत्र हम्मीरको राज्य दे स्वयं वानप्रस्थ हो गया । इसने रणथंभोर में अपने नामसे 'जैत्रसागर' नामका एक तालाब बनवाया था । इसके सुरताण और वीरम नामके दो पुत्र और भी थे । २६८ For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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