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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतके प्राचीन राजवंश प्रबन्धकोशकी वंशावली में भी इसे मालवेका विजेता लिखा है । आगे चलकर हम्मीर-महाकाव्यमें लिखा है कि, “ जब सुलतान खर्परोंसे लड़ रहा था तब वाग्भटने भी सेना एकत्रित कर रणथंभोर पर चढ़ाई की। तीन महीनेतक घिरे रहनेके बाद मुसलमान किला छोड़ भाग गये और किले पर वाग्भटका अधिकार हो गया । इसने १२ वर्ष राज्य किया और इसके बाद इसका पुत्र जैत्रसिंह गद्दी पर बैठा । वाग्भटने मालवेके कितने अंशपर अधिकार किया था, न तो इसीका पता चलता है और न यही पता चलता है कि इसने वहाँके किस राजाको मारा था । परन्तु इतना तो अवश्य कह सकते हैं कि उस समय मालवेके मुख्य भाग (धारा, ग्वालियर आदि ) पर परमार देवपाल देवका राज्य था और नरवर पर कछवाहा-वंशके प्रतापी राजा चाहडदेवका अधिकार था, तथा उनके पीछे उनके वंशज वहाँके अधिकारी हुए थे। अतः वाग्भटने यदि मालवेका कुछ भाग लिया भी होगा तो बहुत समय तक वह चौहानों के अधिकारमें नहीं रहा होगा। तबकाते नासिरीसे पाया जाता है कि, “ शम्सुद्दीनके मरने पर हिन्दुओंने रणथंभोरपर घेरा डाला। उस समय सुल्तान रजिया (बेगम ) ने मलिक कुतबुद्दीनको वहाँपर भेजा । परन्तु वहाँ पहुँचकर उसने किलेके अंदरकी मुसलमान फौजको बाहर बुला लिया और किलेको तोड़ दिल्ली लौट गया । " यह घटना हि० स० ६३४ (वि० स० १२९४-ई० स० १२३७ ) में हुई थी। अतः उसी समय बाहड़देवने रणथंभोर पर अधिकार कर लिया होगा। फरिश्ताने लिखा है कि, “ कुछ स्वतंत्र हिन्दू राजाओंने मिलकर रणथंभोरका किला घेर लिया था । परन्तु रजिया बेगमके भेजे हुए सेनापति कुतबुद्दीन हसनके पहुंचते ही वे लोग चले गये।" (१) Birgg's Farishta, Vol. I, P. 219. For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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