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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 'भारतके प्राचीन राजवंश हम्मीर-महाकाव्यमें लिखा है कि “ शहाबुद्दीनने अपनी पराजयका बदला लेनेके लिये पृथ्वीराज पर सात बार चढ़ाई की और सातों बार उसे हारना पड़ा । इस पर उसने घटेक ( ? ) देशके राजाको अपनी तरफ मिलाया और उसकी सहायतासे अचानक दिल्लीपर हमला कर अधिकार कर लिया । जब यह खबर पृथ्वीराजको मिली तब पहले अनेक बार हरानेके कारण उसने उसकी विशेष परवाह न की और गवसे थोड़ीसी सेना लेकर ही उसपर चढ़ाई कर दी। यद्यपि पृथ्वीराजके साथ इस समय थोड़ीसी सेना थी, तथापि सुलतान, जो कि अनेक बार इसकी वीरताका लोहा मान चुका था, घबरा गया और उसने रातके समय ही बहुतसा धन देकर पृथ्वीराजके फौजी अस्तबलके दारोगा और बाजेवालोंको अपनी तरफ मिला लिया। जब प्रातःकाल हुआ तब दोनों तरफसे घमासान युद्ध प्रारम्भ हुआ । परन्तु विश्वासचाती दारोगा पृथ्वीराजकी सवारीके लिये नाट्यारम्भ घोड़ा ले आया। यह घोड़ा रणमेरीकी आवाज़ सुनते ही नाचने लगा । इस पर पृथ्वीराजका लक्ष भी उसकी तरफ जालगा। इतनेहीमें शत्रुओंने मौका पाकर उसे घेर लिया । यह हालत देख पृथ्वीराज उस घोड़े परसे कूद पड़ा और तलवार लेकर शत्रुओंपर झपटा । इस अवस्थामें भी अकेला वह बहुत देर तक मुसलमानोंसे लड़ता रहा । परन्तु अन्तमें एक यवन सैनिकने पीछेसे उसके गलेमें धनुष डालकर उसे गिरा दिया । बस इसका गिरना था कि दूसरे यवनोंने उसे चटपट बाँध लिया । इस प्रकार बंदी हो जानेपर पृथ्वीराजने अपमानित हो जीनेसे मरना ही अच्छा समझा और खाना पीना छोड़ दिया। इसी अवसर पर उदयराज भी आ पहुँचा । इसको पृथ्वीराजने पहले ही सुलतानके अधीन देशपर हमला करनेको भेजा था । उदयराजके आते ही बादशाह डरकर नगरमें घुस गया । उदयराजको अपने स्वामी पृथ्वीराजके इस प्रकार २५४ For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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