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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतके प्राचीन राजवंश उपर्युक्त युद्ध इन दोनोंमेंसे किसी एकके साथ हुआ होगा; क्योंकि ये लोग अकसर इधर उधर हमले किया करते थे। __ वीसलपुर गाँव और अजमेरके पासका बीसलसर ( बीसल्या ) तालाब भी इसीकी यादगारें हैं। ___ इसके समयके ६ लेख मिले हैं । पहला वि० सं० १२११ का है: यह भूतेश्वरके मन्दिरके एक स्तम्भपर खुदा है । यह मन्दिर मेवाड़ (जहाजपुर जिले ) के लोहरी गाँवसे आध मीलके फासिले पर है। दूसरा और तीसरा वि० सं० १२२० ( ई० स० ११६३ ) का है । चौथा विना संवत्का है । ये तीनों लेख देहलीकी फीरोजशाहकी लाटपर अशोककी आज्ञाओंके नीचे खुदे हैं । पाँचवाँ और छठा लेख भी विना संवत्का है। ये दोनों ढाई दिनके झोंपड़ेकी दीवारपर खुदे हैं। इसके मन्त्रीका नाम राजपुत्र सल्लक्षणपाल था । टौड साहबने पृथ्वीराजरासेके आधारपर सब वीसलदेव ( विग्रहराज) नामक राजाओंको एक ही व्यक्ति मानकर उपर्युक्त वि० सं० १२२० के लेखका संवत् ११२० पढ़ा था । परन्तु यह ठीक नहीं है । उन्होंने पूर्वोक्त फीरोजशाहकी लाट परके ऊपर वर्णन किये वीसलदेवके तीसरे लेखके विषयमें लिखा है कि इसके द्वितीय श्लोकमें पृथ्वीराजका वर्णन है । परन्तु यह भी उनका भ्रम ही है । उक्त लाट परके लेखमें वीसलदेवके पिताका नाम आनल्लदेव लिखा है। २८-अमरगांगेय ।। यह विग्रहराज ( वीसल ) चतुर्थका पुत्र और उत्तराधिकारी था। पृथ्वीराज-विजयमें विग्रहराजके पीछे उसके पुत्रका उत्तराधिकारी होना और उसके बाद पिताको मारनेवाले पूर्वोक्त जगदेवके पुत्र पृथ्वी भटका राज्यपर बैठना लिखा है । परन्तु उसमें विग्रहराजके पुत्र अमरगांगेयका नाम नहीं दिया है । २४६ For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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