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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org www Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतके प्राचीन राजवंश दिल्लीपर विजय प्राप्त की । इससे अनुमान होता है कि इसके और नाडोलवाली शाखाके चौहानों के बीच कुछ वैमनस्य हो गया था । उक्त घटना अश्वराज ( आसराज ) या उसके पुत्र आल्हणके समय हुई होगी, क्यों कि इन्होंने गुजरातके राजा कुमारपालकी अधीनता स्वीकार कर ली थी। देहलीकी प्रसिद्ध फीरोजशाहकी लाटपर वि० सं० १२२० (ई. स० ११६३) वैशाख शुक्ला १५ का इसका लेख खुदा है । उसमें लिखा हैं कि___“ इसने तीर्थयात्राके प्रसङ्गसे विध्याचलसे हिमालयतकके देशोंको विजयकर उनसे कर वसूल किया और आर्यावर्तसे मुसलमानोंको भगा. कर एक बार फिर भारतको आर्यभूमि बना दिया । इसने मुसलमानोंको अटक पार निकाल देनेकी अपने उत्तराधिकारियोंको वसीयतकी थी।" यह लेख पूर्वोक्त फीरोजशाहकी लाटपर अशोककी धर्माजाओंके नीचे खुद हुआ है । हम उसमेंके श्लोक यहाँ उद्धृत कर देते हैं: आविन्ध्यादाहिमाद्रेविरचितविजयस्तीर्थयात्राप्रसङ्गादुद्रीवेषु प्रहर्षान्नृपतिषु विनमत्कन्धरेषु प्रपन्नः । आर्यावर्त यथार्थे पुनरपि कृतवान्म्लेच्छविच्छेदनाभिदेवः शाकंभरीन्द्रो जगति विजयते बीसलः क्षोणिपालः । ब्रूते सम्प्रति चाहुवाणतिळकः शाकंभरीभूपतिः श्रीमान् विग्रहराज एष विजयी सन्तानजानात्मनः । अस्माभिः करदं व्यधायि हिमवद्विन्ध्यान्तरालं भुवः शेषः स्वीकरणायमास्तु भवतामुद्योगशून्यं मनः ।। धाराके परमार राजा भोजकी बनवाई 'सरस्वती-कण्ठाभरण' नामक पाठशालाके समान अजमेरमें इसने भी एक पाठशाला बनवाई थी और उसमें अपने बनाये हुए 'हरकेलि' नाटक और अपने सभापण्डित सोमेश्वर के २४४ For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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